भगवान विष्णु जी के 24 अवतारों में से ही 16वां अवतार है हयग्रीव। हयग्रीव अवतार की पूजा का प्रचलन दक्षिण भारत में अधिक है। यहां पर श्रावण पूर्णिमा के दिन भगवान हयग्रीव जी की जयंती मनाई जाती है।
ऐसा माना जाता है कि भगवान हयग्रीव ने सभी वेदों को ब्रह्मा को पुनः प्रदान किया था। इस बार 30 अगस्त 2023 को यह जयंती मनाई जाएगी। इस अवतार के संबंध में दो कथाएं मिलती है।
पहली कथा : पहली यह कि एक बार मधु और कैटभ नाम के दो शक्तिशाली राक्षस ब्रह्माजी से वेदों का हरण कर रसातल में पहुंच गए। वेदों का हरण हो जाने से ब्रह्माजी बहुत दु:खी हुए और भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान ने हयग्रीव अवतार लिया। इस अवतार में भगवान विष्णु की गर्दन और मुख घोड़े के समान थी। तब भगवान हयग्रीव रसातल में पहुंचे और मधु-कैटभ का वध कर वेद पुन: भगवान ब्रह्मा को दे दिए।

दूसरी कथा : दूसरी कथा के अनुसार एक समय की बात है क‌ि एक बार भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी के सुंदर रूप को देखकर मुस्कुराने लगे। देवी लक्ष्मी को लगा कि वे हंसी उड़ा रहे हैं तो बिना सोचे समझे उन्होंने शाप दे दिया कि आपका सिर धड़ से अलग हो जाए। इसमें भी प्रभु की माया थी। फिर एक बार विष्णुजी युद्ध करते हुए थक गए तो उन्होंने अपने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर उसे धरती पर टिकाया और बाण की नोक पर अपना सिर रखकर योग निंद्रा में सो गए।

फिर हुआ यह कि दूसरी ओर हयग्रीव नाम का एक असुर महामाया का भयंकर तप कर रहा था। भगवती ने उसे तामसी शक्ति के रूप में दर्शन दिया और कहा कि वर मांगो। उसने अमरदा का वरदान मांगा तो माता ने कहा कि संसार में जिसका जन्म हुआ उसे तो मरना ही होगा। यह तो विधि का विधान है। तुम कोई दूसरा वर मांगो। तब उसने कहा कि अच्छा तो मेरी अभिलाषा यह है कि मेरी मृत्यु हयग्रीव के हाथों हो। माता ने कहा कि ऐसा ही होगा। यह कह कर भगवती अंतर्ध्यान हो गईं। हयग्रीव को लगा की अब मेरी मृत्यु तो मेरे ही हाथों होगी, अत: मैं अजर अमर हो गया, परंतु वह कुछ समझ नहीं पाया था।

फिर हयग्रीव ने ब्रह्माजी से वेदों को छीन लिया और देवताओं तथा मुनियों को सताने लगा। यज्ञादि कर्म बंद हो गए और सभी त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगे। यह देखकर सभी देवता ब्रह्मादि सहित भगवान विष्णु के पास गए परंतु वे योगनिद्रा में निमग्र थे और उनके धनुष की प्रत्यंचा चढ़ी हुई थी। ब्रह्माजी ने उनको जगाने के लिए वम्री नामक एक कीड़ा उत्पन्न किया, जिसने वह प्रत्यंचा काट दी। इससे भयंकर टंकार हुआ और भगवान विष्णु का मस्तक कटकर अदृश्य हो गया। यह देखकर सभी देवता दु:खी हो गए और उन्होंने इस संकट के काल में माता भगवती महामाया की स्तुति की। भगवती प्रकट हुई अर उन्होंने कहा कि चिंता मत करो। ब्रह्माजी एक घोड़े का मस्तक काटकर भगवान के धड़ से जोड़ दें। इससे भगवान का हयग्रीवावतार होगा। वे उसी रूप में दुष्ट हयग्रीव दैत्य का वध करेंगे। ऐसा कह कर भगवती अंतर्ध्यान हो गई।

भगवती के कथनानुसार उसी क्षण ब्रह्मा जी ने एक घोड़े का मस्तक उतारकर भगवान के धड़ से जोड़ दिया। भगवती की माया से उसी क्षण भगवान विष्णु का हयग्रीवावतार हो गया। फिर भगवान विष्णु अपने इसी अवतार में हयग्रीव नामक दैत्य से युद्ध करने पहुंच गए। अंत में भगवान के हाथों हयग्रीव की मृत्यु हुई। हयग्रीव को मारकर भगवान ने वेदों को ब्रह्माजी को पुन: समर्पित कर दिया और देवताओं तथा मुनियों को संकट से मुक्ति मिली।