इस महीने की 4 तारीखे को यानी, चार मई को वरूथिनी एकादशी है. वरूथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन की पूजा की जाती है. वैदिक कैलेंडर माह में बढ़ते (शुक्ल पक्ष) और घटते (कृष्ण पक्ष) चंद्र चक्र का ग्यारहवां चंद्र दिवस (तिथि) है. श्रीहरि ने वरदान दिया था कि एकादशी सभी तीर्थों की यात्रा करने से ज्यादा पुण्य देने वाली होगी. तब से एकादशी का व्रत रखने पर श्रीहरि अपने भक्तों की हर मनोकामनाएं पूरी करते हैं. सेलिब्रिटी एस्ट्रोलॉजर प्रदुमन सूरी बताते हैं कि वरुथिनी एकादशी पर इन सभी नियमों का पालन करने से व्यक्ति को समाज में समृद्धि और प्रसिद्धि मिलती है. कहा जाता है कि इस व्रत को करने से अन्नदान और कन्यादान के जितना पुण्य मिलता है.

इस दिन व्यक्ति को उपवास के दौरान एक समय भोजन करना चाहिए. वह भी इस एकादशी से एक दिन पहले (दसवें चंद्र दिवस – दशमी ) को यज्ञ (अग्नि बलिदान) में चढ़ाया गया हविष्यान्न भोजन (मसाले, नमक और तेल के बिना उबला हुआ भोजन) इस व्रत का पालन करने वाले लोगों को खाना चाहिए. इस दिन व्रत करने पर उड़द की दाल, चना, शहद, सुपारी, पान और पालक नहीं खाना चाहिए. इसके साथ ही बेल धातु के बर्तन में भोजन करना तथा दूसरे के घर में भोजन करना भी वर्जित माना गया है.

जानें कौन है श्रीहरि के शरीर से न‍िकली कन्या एकादशी
सतयुग में मुर नाम का दैत्य था. उसने अपने अत्याचारों से देव लोक को भी भयभीत कर दिया था और स्‍वर्ग के राजा इंद्र से उसका सिंहासन छीन लिया था. सभी देवता इसके बाद महादेव के पास पहुंचे और उनसे मदद की प्रार्थना की. भगवान श‍िव ने देवताओं से मुर से मुक्ति पाने के लिए श्रीहरि के पास जाने को कहा. इस पर देवताओं ने श्रीहरि से मदद मांगी.
मुर का वध करने श्रीहरि चंद्रावतीपुरी नगर गए और वहां कई दैत्यों का वध किया. बाद में विश्राम करने वह बद्रिका आश्रम की 12 योजन लंबी गुफा में चले गए. इस बीच मुर ने श्रीहरि को मारने का जैसे ही विचार किया, वैसे ही श्रीहरि विष्णु के शरीर से एक कन्या निकली और उसने मुर दैत्य का वध कर दिया. श्रीहरि ने जागने पर एकादशी की सराहना की और कहा कि आज से एकादशी सभी तीर्थों की यात्रा करने से ज्यादा पुण्य देने वाली मानी जाएगी. मृत्युलोक में तब से एकादशी को व्रत रखने की परंपरा आरंभ हुई.