ब्रुसेल्स । तुर्की ने आयोजित तीन-पक्षीय बैठक में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में स्वीडन के शामिल होने को हरी झंडी नहीं दी। नाटो सचिव जनरल जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने बताया कि अब अगले सोमवार को लिथुआनिया के विलनियस में फिर बैठक पर सहमति बनी है। ब्रुसेल्स में स्टोलटेनबर्ग और स्वीडन और तुर्की के विदेश मंत्रियों के बीच की वार्ता का मकसद स्वीडन के गठबंधन में शामिल होने पर तुर्की की आपत्तियों को दूर करना था।
स्टोल्टेनबर्ग ने ब्रुसेल्स बैठक को उत्पादक बताकर पुष्टि की कि स्वीडन की नाटो सदस्यता पहुंच के भीतर है। उन्होंने कहा कि वह नाटो के 11-12 जुलाई के शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन और स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टरसन के बीच एक बैठक बुलाएंगे। स्वीडन और फिनलैंड ने पिछले साल नाटो में शामिल होने के लिए आवेदन किया था, लेकिन उन्हें तुर्की की आपत्तियों का सामना करना पड़ा। तुर्की का तर्क है कि दोनों देश प्रतिबंधित कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी (पीकेके) और गुलेन आंदोलन के सदस्यों को आश्रय देते हैं।
हेलसिंकी द्वारा इसतरह के संगठनों के खिलाफ ठोस कदम उठाए जाने के बाद तुर्की ने अंततः इस साल की शुरुआत में फिनलैंड के नाटो में शामिल होने पर अपनी आपत्ति हटा ली। अप्रैल में फिनलैंड नाटो का 31वां सदस्य देश बन गया। हालांकि, उसने स्वीडन के खिलाफ आपत्तियां जारी रखी हैं। स्टोल्टेनबर्ग ने कहा कि स्वीडन ने अपने संविधान में संशोधन किया है और नया आतंकवाद विरोधी कानून पेश किया है, तुर्की को हथियारों के निर्यात पर प्रतिबंध हटा दिया है, और पीकेके के खिलाफ आतंकवाद विरोधी सहयोग बढ़ाया है।
तुर्की के विदेश मंत्री हकन फिदान ने कहा, स्वीडन ने विधायी बदलावों के संदर्भ में कदम उठाए हैं, लेकिन विधायी बदलावों को व्यवहार में प्रतिबिंबित करने की जरूरत है। बैठक के बाद फिदान ने कहा कि यह जरूरी है कि नाटो में शामिल होने के इच्छुक देश आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कड़ा रुख अपनाएं।