जैसलमेर। सूबे में विधानसभा चुनावों की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। इसी सिलसिले में कल से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा तथा प्रदेश प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा तीन दिन तक हर कांग्रेस विधायक से वन टू वन मिलकर फीडबैक लेंगे, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या शीर्ष नेतृत्व कैबिनेट मंत्री शाले मोहम्मद तथा जैसलमेर विधायक रूपाराम के बीच दो धड़ों में बंटी कांग्रेस को एकजुट कर पाने में सफल हो पाएंगे?

नगर परिषद चुनावों से शुरू हुआ था घमासान

दरअसल जैसलमेर कांग्रेस में नगर परिषद चुनाव से विवाद चल रहा है। विधायक और मंत्री गुट के रास्ते अलग-अलग हैं। सार्वजनिक कार्यक्रमों में भी दोनों के समर्थक अलग-अलग ही नजर आते हैं। कुल मिलाकर जैसलमेर कांग्रेस में सबकुछ ठीक नहीं है। पंचायती राज चुनावों में भी दोनों गुट एक दूसरे के खिलाफ रहे और कांग्रेस का बहुमत होने के बावजूद जिला प्रमुख की कुर्सी भाजपा की झोली में चली गई। इतना ही नहीं इनका यह विवाद ऊपर तक पहुंच चुका है और सीएम गहलोत को भी जानकारी है।

गहलोत -पायलट की तर्ज पर डोटासरा ने पूर्व में मिलाए थे दोनों के हाथ

जिस तरह राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री गहलोत व पायलट के हाथ मिलाकर एकजुटता प्रदर्शित की थी उसी तर्ज पर प्रदेश अध्यक्ष डोटासरा ने पूर्व में भी सार्वजनिक मंच पर दोनों के हाथ मिलाकर एकजुटता का संदेश देना चाहा था लेकिन ये हाथ भी गहलोत और पायलट के हाथ मिलाने जैसा ही साबित हुआ।

जिले में पहली बार जीते हैं दो कांग्रेसी विधायक

2008 में हुए परिसीमन के बाद पोकरण विधानसभा सीट अलग हुई थी। लेकिन उसके बाद 2018 तक जिले में कभी दोनों सीटों पर कांग्रेस जीत नहीं पाई थी। 2018 में मुस्लिम-मेघवाल गठबंधन से कांग्रेस ने दोनो सीटों पर विजयी पताका लहराया था। लेकिन यह गठबंधन एक साल से ज्यादा नहीं चल पाया।