हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में कहा कि पारिवारिक विवाद के मामले में बच्चों की भलाई व कल्याण देखना सर्वोपरि है। इस विधिक व्यवस्था के साथ कोर्ट ने सहमति से तलाक के मामले में दो बच्चों को मां को देने से इनकार करते हुए पिता के पास रहने की अनुमति दे दी। हालांकि, अमेरिका में रह रही मां लखनऊ आने पर दोनों बच्चों से तय समय पर मिल सकेगी। कोर्ट ने यह आदेश देकर बच्चों को सुपुर्दगी में देने की मां की याचिका निस्तारित कर दी।

न्यायमूर्ति शमीम अहमद की एकल पीठ ने यह फैसला व आदेश महिला की ओर से दायर याचिका पर दिया। महिला ने याचिका में गुहार लगाई थी कि तलाक से पहले हुए उसके पुत्र व पुत्री, पिता ने अवैध रूप से रख रखे हैं। ऐसे में नैसर्गिक अभिभावक होने के नाते, बच्चों को उसको सौंपा जाए। वहीं, नौ वर्षीय बेटे व चार वर्षीय बेटी ने कोर्ट को बताया कि वे पिता के ही पास रहना चाहते हैं। पिता का कहना था कि दोनों बच्चे राजधानी के प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ रहे हैं। जबकि, मां अमेरिका में रहती है। माता ने ही मेल कर बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने को कहा था। ऐसे में बच्चों का भविष्य पिता के पास ही सुरक्षित है।

कोर्ट ने सुनवाई के बाद पाया कि बच्चे पिता के पास अवैध रूप से अभिरक्षा में नहीं हैं। कोर्ट ने आदेश दिया कि दोनों बच्चे पिता के पास रहेंगे। हालांकि, याचिकाकर्ता भारत में आने पर तय समय पर बच्चों से मिल सकेगी। विदेश में रहने के दौरान वह बच्चों से इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी संपर्क कर सकती है। कोर्ट ने याची को कहा कि वह अभिभावकत्व संबंधी कानूनों के तहत बच्चों को लेने का दावा समुचित फोरम पर कर सकती है।

दोनों का विवाह 2008 में हुआ था। विवाह के बाद दोनों अमेरिका चले गए थे। दोनों बच्चे वहीं पैदा हुए थे। बाद में विवाद के चलते दोनों ने अमेरिका की सुपीरियर कोर्ट ऑफ न्यू जर्सी में अर्जी देकर आपसी सहमति से तलाक ले लिया था। इसके बाद पिता लखनऊ में रहने लगे।