उप्र नगर स्थानीय स्वायत्त शासन विधि (संशोधन) अध्यादेश, 2023 में ऐसी व्यवस्था की गई है, जिससे सभी वर्गों को उसकी आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी मिलेगी। राज्य सरकार के इस अध्यादेश में आरक्षण के लिए तय की गई प्रक्रिया से अब आरक्षित वर्ग को प्रतिनिधित्व न मिलने की शिकायतें दूर हो जाएंगी।

अध्यादेश में आरक्षण चक्रानुक्रम की नई व्यवस्था के मुताबिक आरक्षण का चक्र तब तक पूरा नहीं माना जाएगा, जब तक सभी वर्गों को आरक्षण नहीं मिल जाता। ऐसे में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़ों के आरक्षण का चक्र पूरा होने तक चक्रानुक्रम व्यवस्था को शून्य नहीं माना जाएगा

गौरतलब है कि पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट में दिए गए सुझावों के मद्देनजर सरकार द्वारा निकाय में सीटों के आरक्षण की मौजूदा चक्रानुक्रम व्यवस्था में बदलाव के लिए उप्र नगर पालिका अधिनियम, 1916 व उप्र नगर निगम अधिनियम 1959 में संशोधन के लिए उप्र नगर स्थानीय स्वायत्त शासन विधि (संशोधन) अध्यादेश-2023 लाया गया है। इस अध्यादेश में दो प्रमुख बदलाव किए गए हैं। पहला, आरक्षण की पुरानी चक्रानुक्रम व्यवस्था को शून्य माना जाएगा। दूसरा, निकायों को एक इकाई की जगह तीन इकाई मानते हुए चक्रानुक्रम की नई व्यवस्था को लागू किया जाएगा।
जनगणना के नए आंकड़े से भी नहीं रुकेगा चक्र

नई व्यवस्था में प्रदेश स्तर पर सिर्फ महापौर के सीटों का ही आरक्षण होगा। नगर पालिका परिषद में अध्यक्ष के लिए मंडल स्तर और नगर पंचायत अध्यक्ष के लिए जिला स्तर पर सीटों का आरक्षण होगा। इसकी व्यवस्था उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1916 की धारा 9-क की उपधारा (5) को संशोधित करते हुए की गई है। अनुसूचित जनजातियों के लिए कुल पदों की संख्या का अनुपात लगभग वही होगा, जो राज्य के नगरीय क्षेत्रों में था।
इसी तरह अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग के लिए सीटों को आरक्षित किया जाएगा। इन तीनों वर्गों की महिलाओं के लिए आरक्षित पदों की संख्या मंडल या जिले की कुल संख्या के एक तिहाई से अधिक नहीं होगी। सीटों का आवंटन एक मंडल के लिए एक बार में एक पद पर ही किया जाएगा। यह चक्र तब तक जारी रहेगा, जब तक ऐसा कोई पद आवंटित होने से शेष न रह जाए।

इसी प्रकार नगर निगम अधिनियम 1959 की धारा 7 की उपधारा (5) में संशोधन किया गया है। इसमें नई मद बढ़ाते हुए महिलाओं के लिए अनारक्षित पदों की संख्या को शामिल करते हुए राज्य में कुल पदों की संख्या का एक तिहाई कर दिया गया है। आरक्षण के दौरान अगर पदों के आरक्षण करने में कमी आती है तो भागफल में एक वृद्धि करते हुए आरक्षित किया जाएगा। महापौर के पदों का आरक्षण तय अनुपात से होगा। वहीं, यह स्पष्ट किया गया है कि इस अध्यादेश के लागू होते पूर्व में कराए गए निर्वाचन को शून्य मान लिया जाएगा।