भोपाल । मध्य प्रदेश में उच्च शिक्षा विभाग के अंतर्गत 14 विश्वविद्यालय हैं। सभी की हालत अत्यंत खराब है। बच्चों को पढ़ाने के लिए विश्वविद्यालय के पास पर्याप्त स्टाफ नहीं है। छात्र-छात्राओं के भविष्य के साथ सरकार द्वारा खिलवाड़ किया जा रहा है। 
 विश्वविद्यालयों द्वारा राजभवन को जो जानकारी भेजी गई है। उसके अनुसार 14 विश्वविद्यालयों में 1535 पद स्वीकृत हैं। इनमें केवल 407 पद पर फैकल्टी कार्यरत है। 1128 पद लंबे समय से खाली पड़े हुए हैं। यदि इसका औसत निकाला जाए तो 73 फ़ीसदी पदों पर फैकल्टी की नियुक्ति ही नहीं की गई है। इससे मध्यप्रदेश में शिक्षा का स्तर और छात्रों का भविष्य केसा है,इसे आसानी से समझा जा सकता है। 
अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय मे सबसे कम 51 फीसदी पद खाली हैं। वहीं सबसे ज्यादा पद राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय छिंदवाड़ा मे 100 फ़ीसदी पद रिक्त हैं। डॉक्टर बीआर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू के 93 फ़ीसदी पद फैकल्टी के खाली हैं। 
मध्य प्रदेश के 14 विश्वविद्यालयों में बरकतउल्ला विश्वविद्यालय में 63 फ़ीसदी भोज विश्वविद्यालय में 80 फ़ीसदी अटल बिहारी वाजपेई हिंदी विश्वविद्यालय में 51 फ़ीसदी,अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा में 76 फ़ीसदी। राजा शंकर शाह विश्व विद्यालय छिंदवाड़ा में 100 फ़ीसदी, देवी अहिल्या बाई विश्वविद्यालय इंदौर में 62 फ़ीसदी, जीवाजी विश्वविद्यालय ग्वालियर में 69 फ़ीसदी, छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर में 52 फ़ीसदी, रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में 84 फ़ीसदी,विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में 69 फ़ीसदी, महर्षी पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय उज्जैन में 80 फ़ीसदी, महात्मा गांधी चित्रकूट विश्वविद्यालय में 54 फ़ीसदी, बीआर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू में 93 फ़ीसदी तथा एसएन शुक्ला विश्वविद्यालय शहडोल के 80 फ़ीसदी पद खाली पड़े हुए हैं। 
पिछले कई वर्षों से विश्वविद्यालयों में रिक्त पदों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। 17 मार्च को राजभवन में राज्यपाल महोदय ने बैठक बुलाई थी। जिसमें 3 माह के अंदर पद भरने के लिए निर्देश दिए गए थे। इसके बाद भी सरकार और विश्वविद्यालय रिक्त पदों को भरने के लिए कोई विशेष प्रयास करते हुए दिख नहीं रहे है। 
मध्य प्रदेश के विश्वविद्यालय, कांक्रीट के जंगल की तरह बनकर रह गए हैं। जब फैकल्टी नहीं होती है, तो छात्र भी पढ़ने के लिए विश्वविद्यालयों में पहुंचते नहीं है। पंजीयन से लेकर परीक्षा और परीक्षा परिणाम घोषित करने को लेकर विश्वविद्यालयों की कार्यप्रणाली, पिछले कई वर्षों से लगातार चर्चाओं में है। लेकिन सरकार है, ना तो देख पा रही है,ना सुन पा रही है, और ना ही कुछ कर पा रही है। छात्रों का भविष्य बर्बाद हो रहा है। अब इसको लेकर छात्रों में भी बड़ी बेचैनी देखने को मिल रही है। 
विश्वविद्यालयों में इन दिनों बिना पढ़ाई के डिग्री बांटी जा रही है। विश्वविद्यालय अपने परिणाम को बनाए रखने के लिए छात्रों को किसी भी तरह से पास कर के डिग्री देने का काम कर रहे हैं। छात्र -छात्रा भी प्रसन्न हो जाते हैं, कि जब बिना पढ़े डिग्री मिल रही है, तो पढ़ने की जरूरत क्या है। हां जब डिग्री लेकर निकलेंगे,योग्यता नहीं होगी। तब जरूर उनका सारा जीवन बर्बाद हो जाएगा। 
मध्य प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था को लेकर लोगों में निराशा बढ़ती जा रही है। जो पालक अपने बच्चों को ठीक-ठाक पढ़ाई कराना चाहते हैं। वह निजी विश्वविद्यालयों में या दूसरे राज्यों में अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेज देते हैं। पर्याप्त संख्या में फैकल्टी नहीं होने के कारण प्रवेश भी पूरे नहीं हो पा रहे हैं। 
 विभिन्न पाठ्यक्रमों की स्वीकृत सीटों की संख्या 74026 थी। इसमें केवल 61981 छात्र-छात्राओं ने प्रवेश लिया है। 12035 सीटें खाली रह गई हैं। मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा विभाग और विश्वविद्यालयों के इस हाल के लिए कौन जिम्मेदार है। इसकी जवाबदारी लेने कोई तैयार नहीं है। सरकार भी किसी की जवाबदारी तय नहीं करती है। 
आदिवासी राजा शंकर शाह के नाम पर बनाए गए विश्वविद्यालय की इतनी दुर्गति होगी, यह सोचा भी नहीं जा सकता था। इस विश्वविद्यालय में शासन ने 175 पद स्वीकृत किए हैं। लेकिन भर्ती एक भी पद पर नहीं हुई है। कागजों पर आदिवासी राजा शंकर शाह विश्वविद्यालय छिंदवाड़ा धड़ल्ले से चल रहा है। आदिवासी बहुल जिला छिंदवाड़ा के आदिवासी निश्चित रूप से सरकार के इस विद्यालय में उच्च शिक्षा की पढ़ाई कर,अपना बेहतर भविष्य बना पाएंगे। इतनी आशा तो कर ही सकते हैं। 
डॉक्टर बी आर अंबेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय महू की हालत भी छिंदवाड़ा से अलग नहीं है। बाबा साहब अंबेडकर के नाम से बनाए गए इस विश्वविद्यालय की स्थिति बताती है, कि सरकार बाबा साहब और दलितों के प्रति किस तरह की सोच रख रही है। इस विश्वविद्यालय में भी 93 फ़ीसदी पद खाली पड़े हुए हैं।