वाशिंगटन। क्‍या आपने कभी सोचा है कि एक आदमी को हर दिन औसतन कितने लीटर पसीना निकलता है और महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले पसीना कम क्‍यों आता है? क्‍या बहुत ज्‍यादा पसीना आना सेहत के लिए नुकसानदायक होता है या अच्‍छा रहता है? डॉक्‍टर्स के मुताबिक, ज्‍यादा या कम पसीना आना हर व्‍यक्ति के शरीर के आकार, फिटनेस और हाइड्रेशन पर निर्भर करता है। हालांकि, हीटस्‍ट्रोक के मामले बाल्टियों पसीना आना सामान्‍य बात है। विज्ञान के मुताबिक, मानव शरीर में करीब-करीब 30 लाख पसीने की ग्रंथियां होती हैं। इनमें सबसे ज्‍यादा पसीने की ग्रंथियां हमारी हथेलियों में होती हैं। आपने देखा होगा कि कुछ क्रिकेटर्स बैटिंग करते समय बार-बार अपने बैटिंग ग्‍लव्‍स बदलते हैं। दरअसल, उन बैट्समैन को हथेलियों में बहुत ज्‍यादा पसीना आता है। इसलिए उनके बैटिंग ग्‍लव्‍स बहुत जल्‍दी गीले हो जाते हैं।अब सवाल उठता है कि एक व्‍यक्ति एक घंटे में ज्‍यादा से ज्‍यादा कितना पसीना निकाल सकता है?
 विशेषज्ञों के मुताबिक, एक व्‍यक्ति एक घंटे में 0.7 लीटर से लेकर 1.5 लीटर तक पसीना निकाल सकता है। ये उसके शरीर के आकार, फिटनेस, हाइड्रेशन और काम पर निर्भर करता है। सैद्धांतिक तौर पर अगर आपने काफी पानी पिया है और आप ट्रेडमिल पर दौड़ रहे हैं तो आपको लगातार काफी पसीना आने की संभावना है। वहीं, अगर आप पार्क में दौड़ लगा रहे हैं या क्रिकेट या कोई दूसरा गेम खेल रहे हैं तो आपको ज्‍यादा पसीना आ सकता है। अगर आप शारीरिक तौर पर बहुत ज्‍यादा सक्रिय रहते हैं तो आपको हर घंटे 1.5 से 1.8 लीटर तक पसीना आ सकता है। 
एक ट्राइएथलीट इतने ही समय में 4 लीटर तक पसीना निकाल सकता है। संयुक्त मैराथन दौड़, 2.4 मील की तैराकी और 112 मील की बाइक की सवारी के दौरान प्रतियोगियों को करीब 15 लीटर पसीना आता है। ओंटारियो में गुएलफ यूनिवर्सिटी के एक्‍सरसाइज फिजियोलॉजिस्ट लॉरेंस स्प्रिट कहते हैं कि हमारे शरीर के वजन का 3 से 5 फीसदी कम होने के बाद पसीना निकलने की प्रक्रिया धीमी होने लगती है। एनवॉयरमेंट और एक्‍सरसाइज फिजियोलॉजिस्ट लॉरेंस आर्मस्ट्रांग ने साबित किया है कि मानव शरीर से लगातार पसीना निकलता है, चाहे वह कितना भी डिहाइड्रेट क्यों न हो।लॉरेंस आर्मस्ट्रांग के मुताबिक, जब तक हाइपोथैलेमस पसीने की ग्रंथियों को नर्व इंपल्‍स यानी तंत्रिका आवेग भेज रहता है, तब तक हमें पसीना आता रहेगा।
 उनका कहना है कि अगर आपको पसीना आना बंद हो गया तो निश्चित तौर पर कुछ बहुत ही गलत होने वाला है। स्प्रीट कहते हैं कि अगर हमारा कोर तापमान 104 डिग्री से ज्‍यादा हो जाता है तो शरीर उस बिंदु तक ज्‍यादा गरम होना शुरू हो जाता है, जहां उसके प्रोटीन विकृत हो जाते हैं। जब ऐसा होता है तो ऊतकों की झिल्लियां अपनी अखंडता खो देती हैं और चीजें लीक हो जाती हैं। ऐसे में हमारा इंटेस्‍टाइन बैक्टीरिया को रक्तप्रवाह में छोड़ सकता है और शरीर सदमे में चला जाता है। लेकिन, तब तक हम शायद बेहोश हो चुके होंगे। हो सकता है कि हम कोमा में भी चले जाएं।
 आपने देखा होगा कि कुछ लोगों को गर्मियों में या सर्दियों में भी दौड़ने या व्‍यायाम करने के दौरान बहुत ज्‍यादा पसीना आता है और कुछ को कम। वहीं, महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम पसीना आता है। गर्मियों की चिलचिलाती धूप में अगर बाहर निकलना पड़ जाए या थोड़ी देर के लिए बिजली चली जाए और पंखा-एसी बंद हो जाए तो कुछ लोगों को इतना पसीना आता है कि लगता है, जैसे अभी नहाकर निकले हों।