राजस्थान में एक ऐसा मंदिर है जहां घंटी नहीं बजाई जाती है। किसी भी तरह के शोर पर पूरी तरह से पाबंदी है। इतना ही नहीं इस मंदिर में मां सरस्वती जी की प्रतिमा के साथ ही दुनियां के महापुरुषों की प्रतिमाएं लगी हुईं हैं, जिन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। 

खजुराहो की तर्ज पर बना ये मां सरस्वती जी का मंदिर झुंझुनूं जिले के पिलानी में बिट्स कैंपस में है। इस मंदिर को देश के बड़े औद्योगिक घराने बिरला परिवार ने बनवाया है। आइए अब इस मंदिर से जुड़ी कहानी के बारे में जानते हैं...।

कहां बना है मंदिर?

बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस (बिट्स) पिलानी परिसर में साल 1956 में इस मंदिर का निर्माण कार्य बिरला परिवार ने शुरू कराया था। चार साल बाद 1960 में ये मंदिर बनकर तैयार हुआ। 25 हजार वर्ग फीट में पहले इस मंदिर को मकराना के सफेद संगमरमर से बनाया गया है। मंदिर में 70 स्तंभ हैं, इसके गर्भगृह में माता सरस्वती की प्रतिमा स्थापित है। मां सरस्वती की इस खड़ी हुई मुद्रा की प्रतिमा को साल 1959 में को कोलकाता से मंगवाया गया था।

क्यों और किसके कहने पर कराया गया मंदिर निर्माण

कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण बिट्स में वास्तु दोष को दूर करने के लिए कराया गया था। कहते हैं कि शेखावाटी में आराध्य परमहंस गणेश नारायण यानी बावलिया बाबा को लेकर बिरला परिवार में बड़ी आस्था है। एक बिट्स को लेकर बावलिया बाबा ने बिरला परिवार से कहा था आपने संस्थान को बहुत अच्छा बनाया है, लेकिन ये दक्षिण मुखी हो गया है। ये दोष दूर करने के लिए इसके ठीक सामने माता सरस्वती को विराजित कराएं।

किस मंदिर की तर्ज पर किया गया निर्माण

बिट्स परिसर में बनाए जाने वाले मां सरस्वती के मंदिर को बिरला परिवार अनोखे रूप में बनाना चाहता था। काफी तलाश के बाद खजुराहो के खंडारिया शिव मंदिर की शैली से प्रभावित होकर इंडो आर्यन शैली में ये मंदिर बनाया गया। 1960 में इस मंदिर के निर्माण में 23 लाख रुपये खर्च किए गए थे। मंदिर जमीन से करीब 20 मीटर ऊंचा बना हुआ है। इसके गर्भगृह के ऊपर का शिखर 110 फीट ऊंचा है।

मंदिर में 1267 महापुरुषों की प्रतिमाएं

दुनिया भर में ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां देश-दुनिया के करीब 1267 महापुरुषों की प्रतिमाएं भी बनाई गई हैं। ये प्रतिमाएं ऐसे महापुरुषों की हैं जिन्होंने कला, शिक्षा, साहित्य, विज्ञान, संगीत समेत आदि क्षेत्र में असाधारण काम किया है। इनमें गणितज्ञ आर्यभट्ट, मैडम क्यूरी, होमी जहांगीर भाभा, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस सहित अनेक महापुरुष शामिल हैं। इन सभी महापुरुषों की प्रतिमाएं मंदिर के शिखर के चारों ओर लगी हुई हैं। 

मंदिर में कभी नहीं बजाई जाती घंटी

माता सरस्वती को ज्ञान, कला और संगीत की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि सरस्वती जी की साधना से मन को शांति मिलती हैं। यही कारण है कि यहां कभी भी घंटी या कोई और बाद्य यंत्र नहीं बजाया जाता है। मंदिर में एक विंड चाइम है, जिसे खास मौकों पर बजाने की परंपरा है।

शिलान्यास और लोकार्पण भी रहा ऐतिहासिक

बताया जाता है कि माता सरस्वती के मंदिर का शिलान्यास तत्कालीन उप राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन और मदन मोहन मालवीय ने किया था। चार साल बाद 6 फरवरी 1960 को इसका लोकार्पण देश के वित्त मंत्री रहे मोरारजी देसाई ने किया था।

इस दौरान जीडी बिरला और विनोबा भावे समेत देश के कई बड़े नामी व्यक्ति मौजूद रहे थे।