मुरझाई शरीर जवाब दे रहा है, हाथ पांव थक गए हैं। आंखें पथरा गई है, लेकिन बानो की आंखों में अपनों का इंतजार बाकी है। वे अपने, जो कलेजे के टुकड़े थे, जिसने दूर कर दिया है। जब कोई पुकारता है, तो फौरन आंखें चारों तरफ घूमा लेती है। अपने नहीं दिखते, तो फिर धीरे से आंखें मूंद लेती है।

यह कहानी है शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के लावारिस वार्ड में भर्ती 72 वर्षीय बानो की। 3 वर्ष से अस्पताल में रह रही वृद्धा के बारे में केवल इतना ही पता चल पाया कि उसका नाम बानो है। पहले किसी तरीके से बोल पाती थी, लेकिन अब 3 महीने से बोलती भी नहीं।

यही हाल लावारिस वार्ड में भर्ती चार अन्य मरीजों का भी है। दरअसल, कई लोग बुजुर्गों को बोझ समझ कर बीमार होने पर अस्पताल में छोड़कर चले जा रहे हैं। कोई तीन साल तो कोई 6 महीने से लावारिस बनकर अस्पताल में पड़ा है।

पिछले वर्ष दुर्गा पूजा में लावारिस वार्ड में भर्ती 65 वर्षीय सुजीत कुमार को उसके घर वाले आखिरकार ले गए थे। काफी कोशिश करने के बाद अस्पताल प्रबंधन उसके घर वाले तक संपर्क कर पाया था। सुजीत के घर वालों ने अपनी गलती मानी और उनके बेटे और बहू उसे लेकर गए।

इसके बाद से वार्ड में भर्ती अन्य लावारिस भी अपनों का आने का इंतजार दुर्गा पूजा में काफी उम्मीद से करते हैं। लेकिन इस दुर्गा पूजा में कोई अपना नहीं आया।

लावारिस वार्ड में 75 वर्षीय चांद मुनि की स्थिति काफी खराब है। तीन दिनों से खाना नहीं खा रही है। बार-बार अपनों को पुकार रही है। अस्पताल के कर्मचारी बताते हैं की एक संस्था वाले ने चांद मुनि को यहां छोड़ दिया है। चांद मुनि का भरा पूरा परिवार है, लेकिन उसे लावारिस अवस्था में संस्था को दे दिया था।

संस्था में लगातार बीमार रहने लगी, तो 3 महीने पहले अस्पताल में लाकर छोड़ दिया गया। अब चांद मुनि को एक ही आशा है, शरीर से प्राण निकलने से पहले अपने बहू बेटे को देख ले। बगल में भर्ती कतरास के रमेश कुमार गुप्ता हैं।

65 वर्षीय रमेश बता रहे हैं कि उनका कोई नहीं है, वह काफी बीमार हो गए थे। इसके बाद उन्हें साल भर पहले अस्पताल में लाया गया। अब यहां से कहां जाएं, अब शरीर भी साथ नहीं दे रहा।

लावारिस लोगों के लिए अस्पताल प्रबंधन ने काफी कोशिश की है। जो भी लावारिस व्यक्ति भर्ती होते हैं, उनका कोई आधार कार्ड या पहचान नहीं है। अस्पताल के अधीक्षक डॉ अनिल कुमार बताते हैं चार मरीजों को भर्ती कराया गया, लेकिन घर वाले नाम पता और मोबाइल नंबर गलत लिख कर चले गए।

एक महीने तक जब मरीज को कोई लेने नहीं आया, तब नाम, पता और मोबाइल नंबर पर संपर्क करने की कोशिश की गई, लिखे गए पते पर कर्मचारियों को भी भेजा गया, लेकिन सब फर्जी निकले। लावारिस लोगों के बारे में प्रशासन और स्थानीय पुलिस को भी सूचना दी गई है। उनके अपने पहुंच जाएं इसके लिए कोशिश हो रही है।