भोपाल। चुनावी साल में मध्य प्रदेश के साढ़े चार लाख पेंशनरों को महंगाई राहत जल्द ही 38 प्रतिशत की दर से मिलेगी। इसके लिए प्रदेश सरकार ने छत्तीसगढ़ सरकार से सहमति मांगी गई है। अभी पेंशनर को 33 प्रतिशत की दर से महंगाई राहत मिल रही है, जिसे एक जनवरी 2023 से 38 प्रतिशत किया जाएगा। गौरतलब है की प्रदेश के पेंशनर्स लगातार इसकी मांग कर रहे हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार ने अन्य अधिकारियों-कर्मचारियों की तरह पेंशनर्स को भी 5 प्रतिशत महंगाई राहत बढ़ाकर देने की तैयारी शुरू कर दी है।
राज्य में पेंशनरों की महंगाई राहत में वृद्धि के लिए राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच सहमति होना अनिवार्य है। दरअसल, राज्य विभाजन के पूर्व के कर्मचारियों की पेंशन पर होने वाले व्यय का 76 प्रतिशत हिस्सा मध्य प्रदेश और 24 प्रतिशत छत्तीसगढ़ वहन करता है। सरकार प्रदेश के साढ़े सात लाख अधिकारियों-कर्मचारियों को एक जनवरी 2023 से 38 प्रतिशत की दर से महंगाई भत्ता दे रही है। पेंशनर की महंगाई राहत भी जनवरी से बढ़ाई जानी है। इसके लिए वित्त विभाग के सचिव अजीत कुमार ने छत्तीसगढ़ सरकार के वित्त विभाग को पत्र लिखकर सहमति मांगी है।
महंगाई भत्ते में अंतर को समाप्त किया जाए
पेंशनर एसोसिएशन मध्य प्रदेश के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गणेश दत्त जोशी का कहना है कि कर्मचारियों को जिस तारीख से 38 प्रतिशत महंगाई भत्ता दिया जा रहा है, उसी समय से महंगाई राहत में वृद्धि होनी चाहिए। दरअसल, मध्य प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49 में महंगाई दर मेें वृद्धि के लिए दोनों राज्यों के बीच सहमति आवश्यक है। इसमें व्यय होने वाली राशि का 76 प्रतिशत हिस्सा मध्य प्रदेश और शेष 24 प्रतिशत का भार छत्तीसगढ़ सरकार उठाती है। यही कारण है कि जब कर्मचारियों का महंगाई भत्ता 34 प्रतिशत किया गया था, तब महंगाई राहत 33 प्रतिशत की गई थी क्योंकि छत्तीसगढ़ सरकार ने पांच प्रतिशत की ही वृद्धि करने की सहमति दी थी। वित्त विभाग के अधिकारियों का कहना है कि हम अपनी तैयारी कर चुके हैं और एक जनवरी 2023 से महंगाई राहत में वृद्धि का निर्णय लिया जा चुका है। छत्तीसगढ़ सरकार की सहमति प्राप्त होते ही आदेश जारी कर दिए जाएंगे। उधर, पेंशनर एसोसिएशन मध्य प्रदेश के वरिष्ठ उपाध्यक्ष गणेश दत्त जोशी का कहना है कि सहमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। केंद्र सरकार इसको लेकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकार को पत्र भी लिख चुकी है पर अब तक नीतिगत निर्णय नहीं लिया गया है। इससे पेंशनर को नुकसान होता है और एरियर भी नहीं दिया जाता है।