यरुसलेम । चीनी राष्ट्रपति के सऊदी अरब और ईरान के बीच शांति समझौते में अहम भूमिका निभाने वाले कदम ने मध्य पूर्व (पश्चिम एशिया) को हिला दिया है। लंबे समय के बाद मध्य पूर्व में शांति समझौता हुआ है। यह न केवल दो आश्चर्यजनक प्रतिभागियों ईरान और सऊदी अरब के बीच है, बल्कि सफल मध्यस्थता ने इस विवादित क्षेत्र में चीन के प्रवेश की शुरुवात है। ईरान और सऊदी अरब एक-दूसरे को कभी फूटी आंख नहीं सुहाते थे। लेकिन अब दूतावास को खोलकर संबंध को बहाल करने की तैयारी में हैं। दोनों देशों के बीच हुए शांति समझौते के बाद सबसे ज्यादा परेशान अगर कोई है, तब वहां इजरायल है। ईरान और सऊदी के बीच हुए समझौते को इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। 
नेतन्याहू की ओर से ईरान को सार्वजनिक तौर पर बड़ा खतरा बताया जाता रहा है। वहां हमेशा से ईरान की राजनयिक प्राथमिकताओं और व्यक्तिगत धर्मयुद्ध के लिए बड़ा खतरा बताते रहे हैं। इस एग्रीमेंट के बाद से ही नेतन्याहू को समझ नहीं आ रहा कि क्या कदम उठाया जाए। साल 2020 में अमेरिका की कोशिश के कारण ही इजरायल को बड़ी कूटनीतिक सफलता हासिल हुई थी। चार अरब देशों के साथ इजरायल ने अब्राहम समझौता किया था। इस समझौते के बाद बहरीन, यूएई, मोरक्को और सूडान ने इजरायल के साथ संबंधो को सामान्य करने पर हामी भरी थी। इस समझौते का मकसद ही ईरान को क्षेत्र में अलग-थलग करना था। 
लेकिन अब ऐसा लगा रहा हैं कि नेतन्याहू का दांव उल्टा पड़ गया हैं।