जिनेवा । आतंकवाद से जूझ रहे माली से लगभग 13000 शां‎तिरक्षकों को वापस उनके देश भेजने के ‎लिए चार माह का समय तय हुआ है। हालां‎कि संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने माली के सैन्य जुंटा के आदेश पर देश से शांतिरक्षकों की चार महीने में वापसी सुनिश्चित करने की प्रक्रिया को चुनौतीपूर्ण करार देते हुए कहा है कि इसकी समय सीमा, दायरा और जटिलता अप्रत्याशित है। पश्चिम अफ्रीकी देश माली के सैन्य जुंटा ने इस्लामी आतंकवाद से निपटने के लिए अब रूस के वैगनर समूह के भाड़े के सैनिकों की मदद लेने का फैसला किया है। माली के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत एल-घासिम वेन ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को इस अभियान के पैमाने से अवगत कराया। इस निकासी अभियान के तहत 31 दिसंबर की समय सीमा तक 1,786 असैन्य कर्मियों की सेवाएं समाप्त की जानी है, सभी 12,947 संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षकों और पुलिसकर्मियों को उनके देश भेजा जाना है, उनके 12 शिविर एवं एक स्थायी अड्डे को सरकार को सौंपा जाना है। संयुक्त राष्ट्र में माली के राजदूत इस्सा कोनफौरौ ने कहा कि सरकार संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के साथ सहयोग कर रही है, लेकिन वह समय सीमा नहीं बढ़ाएगी। 
बता दें ‎कि माली में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन को ‘एमआईएनयूएसएमए’ के नाम से जाना जाता है। वेन ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र को उपकरणों के लगभग 5,500 समुद्री कंटेनर और 4,000 वाहनों को भी हटाना होगा। ये उपकरण एवं वाहन संयुक्त राष्ट्र और उन देशों के हैं, जिन्होंने ‘एमआईएनयूएसएसए’ के लिए कर्मी मुहैया कराए हैं। माली में शांतिरक्षा मिशन संयुक्त राज्य के एक दर्जन अभियानों में से चौथा सबसे बड़ा मिशन है। संयुक्त राष्ट्र ने 2013 में यहां शांतिरक्षकों को तैनात किया था और यह उसका दुनिया में सबसे खतरनाक मिशन बन गया है, जिसमें 300 कर्मियों ने जान गंवाई है। इस मिशन को आधिकारिक तौर पर 30 जून, 2023 को समाप्त कर दिया गया था और 31 दिसंबर, 2023 तक सभी संयुक्त राष्ट्र बलों को माली से वापस बुलाया जाना है। 
गुतारेस ने 13 पन्नों के पत्र में कहा ‎कि इस मिशन की वापसी की समयसीमा, दायरा और जटिलता अभूतपूर्व है। उन्होंने कहा कि चारों ओर से भू सीमाओं से घिरे देश का विशाल इलाका, कुछ क्षेत्रों में प्रतिकूल वातावरण और इसकी जलवायु छह महीने की समय सीमा के भीतर मिशन की वापसी को बेहद चुनौतीपूर्ण बनाती है। गुतारेस ने कहा कि आतंकवादी सशस्त्र समूहों की उपस्थिति और प्रमुख पारगमन देश नाइजर पर हाल में सेना के कब्जे के कारण सैनिकों और उपकरणों को ले जाने में और बाधा पैदा हुई है।