प्रयागराज: साहित्यिक राजधानी के रूप में विख्यात रहे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के आकर्षण में मुंशी प्रेमचंद भी खिंचे चले आए थे। उनका जन्म तो हुआ था वाराणसी के लमही में लेकिन 1902 में जब उन्होंने अपना पहला लेख लिखा तो लेखक के रूप में अपना नाम दिया नवाब राय ‘अलाहाबादी’।

यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि तीर्थराज प्रयाग में बसने की प्रेमचंद की इच्छा शुरू से ही थी जो उनके जीते पूरी नहीं हो सकी। हालांकि यही सहसों में उन्हें ससुराल का सुख जरूर मिला। उप्र हिंदुस्तानी एकेडेमी की पहली कार्यकारिणी में शामिल होकर प्रेमचंद ने हिंदी और उर्दू की पताका फहराने में अमूल्य योगदान दिया था।

प्रयागराज से था गहरा नाता

कथाकार और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द की मौजूदगी में ही अंग्रेजी के प्रोफेसर अहमद अली के घर में प्रगतिशील लेखक संघ की योजना बनी थी। उनके बारे में साहित्यकार रविनंदन कहते हैं कि प्रेमचंद का प्रयागराज से गहरा रिश्ता था।

उन्होंने पहला उपन्यास उर्दू भाषा में प्रयागराज में ही रहते हुए लिखा था। जनवरी 1936 में आखिरी बार यहां आए थे। हिंदी साहित्यकार प्रो. राजेंद्र कुमार कहते हैं कि प्रेमचंद ने स्वतंत्रता आंदोलन चरमोत्कर्ष की ओर बढ़ने के दौरान देश के बारे में काफी कुछ लिखा था।

उनकी यह सोच थी कि हम जिस समाज के अंग हैं, जिस मिट्टी में पैदा हुए बदले में उसे हम दे क्या रहे हैं। बताया कि उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक के लिए पारसी और अंग्रेजी विषय का चयन किया था। 1920 में जब स्वतंत्रता आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व में आगे बढ़ रहा था वह समय ही राष्ट्रीय जागरण का हो गया था।

प्रेमचन्द ने तब अपना पहला कहानी संग्रह सोजेवतन लिखा जिसमें एक कहानी 'दुनिया का सबसे अनमोल रतन' भी थी। इसका अर्थ यह है कि अपने देश, अपनी माटी की रक्षा के लिए बहाया गया खून का एक कतरा अनमोल रतन होता है।