भोपाल । देश में मोदी और भाजपा से मुकाबले के लिए बना विपक्षी 26 दलों का गठबंधन ‘इंडिया’ मप्र विधानसभा चुनाव में बिखर गया है। क्योंकि, कांग्रेस ने गठबंधन इंडिया के सहयोगी दलों समाजवादी पार्टी (सपा) और जनता दल यूनाईटेड (जदयू) और आम आदमी पार्टी (आप) को मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में नजरंदाज कर दिया। इसके बाद सपा, जदयू और आप ने कांग्रेस से अलग राग अलापते हुए अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं। आखिर क्यों कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में सपा, आप और जदयू से किनारा किया? क्यों शादी के पहले इंडिया के गठबंधन के दलों में शादी के पहले तलाक की नौबत आ रही है? इसको लेकर मध्यप्रदेश सहित देशभर में सियासत गर्माने लगी है।
दरअसल, विपक्ष के 26 दलों का जब गठबंधन हुआ तब कहा गया वे सारे देश में भाजपा के खिलाफ मिलकर लड़ेंगे। लेकिन गठबंधन के सबसे बड़े दल कांग्रेस ने साफ कहा है कि इंडिया का गठन 2024 लोकसभा चुनावों के लिए हुआ न कि विधानसभा चुनाव के लिए। कांग्रेस ने इसी रणनीति के तहत पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मिजोरम और तेलंगाना में अपने किसी सहयोगी दल को तवज्जो नहीं दी। मिजोरम को छोडक़र राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की भाजपा से सीधी लड़ाई है। वहीं, तेलंगाना में उसका मुकाबला के. चंद्रशेखर राव की भारत राष्ट्र समिति से है। इधर, कांग्रेस द्वारा मप्र में तवज्जो नहीं दिए जाने से सपा भी नाखुश है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव कहते हैं कि यदि उन्हें पता होता कि इंडिया गठबंधन विधानसभा स्तर पर नहीं है, तो वह कांग्रेस के कभी बात ही नहीं करते। इसके आगे वे कहते हैं कि उप्र में कांग्रेस के साथ वैसा ही सलूक किया जा सकता है जैसा मध्य प्रदेश में उनके साथ किया गया।

कांग्रेस खुद को कमजोर नहीं करना चाहती
राजनीतिक विज्ञानियों का कहना है कि कांग्रेस अब देश मेें खोए जनाधार को पुन: हासिल करना चाहती है। यही वजह है कि वह सपा, आप, जदयू और वामदल सहित अन्य दलों के लिए सीट छोडऩे को तैयार नहीं हुई। कांग्रेस की रणनीति है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में वह मजबूत बनकर उभरेगी तो वह लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में इंडिया गठबंधन केसहयोगी दलों के दबाव में आने की बजाय उन्हें दबाव में लेकर ज्यादा सीटें हासिल कर सकेगी।

इसलिए भी गठबंधन दलों को भाव नहीं
कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि मध्यप्रदेश सहित विधानसभा चुनाव वाले पांचों राज्यों में कांग्रेस ने इंडिया के सहयोगी दलों को इसलिए भी तवज्जों नहीं दी, क्योंकि उसे डर था कि यदि वह इन राज्यों में तवज्जो देती, तो उसे आगे उप्र और बिहार सरीखे बड़े हिन्दी भाषी राज्यों में भी गठबंधन इंडिया के सहयोगी दलों को तवज्जो देना पड़ती। लोकसभा चुनाव में सीटों को लेकर बड़े समझौते करने पड़ सकते हैं। इन राज्यों में कांग्रेस का अपना बड़ा वोट बैंक और जनाधार है। फिर कांग्रेस के उप्र और बिहार में सपा और जदयू से गठबंधन के पिछले अनुभव बेहद खराब रहे हैं।