रांची। पिछले दिनों पूरे दल के साथ कांग्रेस में विलय करने वाले पप्पू यादव को टिकट देने को लेकर कांग्रेस और राजद में छिड़ी जंग का असर झारखंड में भी देखने को मिल सकता है। माना जा रहा है कि पूर्णिया से पप्पू यादव को अगर कांग्रेस पार्टी टिकट देती है तो यही फॉर्मूला झारखंड के पलामू में भी देखने को मिल सकता है।

पलामू में राजद अपने उम्मीदवार को लड़ाने के लिए डटा हुआ है और कांग्रेस यह सीट छोड़ने नहीं जा रही है। अभी दो दिनों पूर्व ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने दावा किया था कि पलामू सीट पर कांग्रेस के दावे से लालू यादव सहमत हैं, लेकिन बदलते हालात में दोनों दल आमने-सामने डट जाएं तो कोई नई बात नहीं होगी।

पिछले लोकसभा चुनाव में भी राजद-कांग्रेस के उम्मीदवार गठबंधन होने के बावजूद कई सीटों पर फ्रेंडली फाइट कर चुके हैं और इसका नतीजा भी दोनों दलों ने भुगता है। बिहार-झारखंड में कांग्रेस और राजद में गठबंधन है और सीटों के बंटवारे के पहले से ही दोनों दलों के उम्मीदवार ताल ठोंककर मैदान में खड़े हैं।

आइएनडीआइए के बीच सीटों के बंटवारे की घोषणा नहीं हुई

पूर्णिया में कांग्रेस के पप्पू यादव पीछे हटने को तैयार नहीं हैं तो पलामू में ममता भुइयां ने गठबंधन की ओर से सीटों की घोषणा के पहले ही अपना चुनावी अभियान शुरू कर दिया है। ममता का दावा है कि पार्टी (राजद) ने उन्हें चुनाव लड़ने को कह दिया है।

झारखंड में आइएनडीआइए के बीच सीटों के बंटवारे की अभी घोषणा नहीं हुई है। महागठबंधन के फार्मूले के अनुसार यहां राजद को एक सीट (चतरा) दिए जाने की बात कही जा रही है, लेकिन राजद ने चतरा और पलामू दोनों सीटों पर लड़ने की तैयारी कर रखी है।

पलामू में दोस्ताना संघर्ष के लिए जमीन तैयार कर रहा RJD

जाहिर सी बात है कि राष्ट्रीय जनता दल पलामू में दोस्ताना संघर्ष के लिए जमीन तैयार कर रहा है। मतलब गठबंधन में रहने के बावजूद पलामू में राजद का उम्मीदवार स्वतंत्र रूप से लड़ेगा। यहां गठबंधन के साथी कांग्रेस के उम्मीदवार का मैदान में उतरना भी पूरी तरह से तय माना जा रहा है। हालांकि, यहां कुछ बातें तो बिहार की गतिविधियों पर भी निर्भर रहेंगी।

पिछले चुनाव में भी कांग्रेस, वामपंथी दलों और राजद ने कई सीटों पर दोस्ताना संघर्ष कर इसका परिणाम भुगता था। चतरा से कांग्रेस के मनोज यादव मैदान में थे तो राजद के सुभाष यादव और सीपीआइ ने अर्जुन कुमार को टिकट दिया था। तीनों को हार का मुंह देखना पड़ा।

इसी प्रकार कांग्रेस ने अपने हिस्से की सीट कोडरमा से झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी को मैदान में उतारा था तो माले ने राजकुमार यादव को उतार दिया था। महागठबंधन के दलों को उन सीटों पर तो निश्चित तौर पर हार का मुंह देखना पड़ा था जहां एक-दूसरे के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे।

झारखंड की 14 सीटों में से दो सीटों पर महागठबंधन को जीत मिली थी और उसका कारण यह था कि इन सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ प्रत्याशी उतारे नहीं गए थे।