झारखंड के गुमला जिला अंतर्गत सिसई प्रखंड में स्थित नवरत्न गढ़ में चल रही पुरातात्विक खुदाई में अद्भुत स्थापत्य वाले भूमिगत महलों की संरचनाएं मिल रही हैं. यहां अब तक प्राप्त हुए अति प्राचीन अवशेषों से 16वीं-17वीं शताब्दी के कालखंड का ऐसा इतिहास सामने आ रहा है, जो वक्त के थपेड़ों के साथ जमींदोज हो गया था. 

बीते हफ्ते यहां जमीन के नीचे एक खुफिया दरवाजा मिला है. अभी दरवाजे का आधा हिस्सा नजर आया है. संभावना जताई जा रही है कि यह दरवाजा किसी सुरंग का हिस्सा रहा होगा. भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग यहां खुदाई के परिणामों से बेहद उत्साहित है.

नवरत्नगढ़ को वर्ष 2009 में ही राष्ट्रीय पुरातात्विक धरोहर घोषित किया जा चुका है और अब यह स्थान स्थानीय पर्यटकों, पुरातत्वविदों एवं इतिहासकारों के लिए कौतूहल और जिज्ञासा का केंद्र बन गया है. पिछले साल भी भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग की खुदाई के दौरान यहां प्राचीन भूमिगत महल की संरचना प्राप्त हुई थी.  जमीन के अंदर बनाया गया यह महल लगभग साढ़े पांच सौ से छह सौ साल पुराना हो सकता है. महल और उसके पास-पास कई महत्वपूर्ण अति प्राचीन अवशेष मिले हैं. विभाग इनका अध्ययन करा रहा है. 

उत्तर मध्यकाल में नवरत्नगढ़ नागवंशी राजाओं की राजधानी था. अब तक मिले अभिलेख और प्रमाण के अनुसार नवरत्न गढ़ छोटानागपुर (वर्तमान झारखंड) में सबसे लंबे समय तक शासन करनेवाले नागवंश के 45वें राजा दुर्जन शाल के शासनकाल में बसा था. इसे डोईसागढ़ नगर के रूप में भी जाना जाता था. सन 1571 में यहां किले का निर्माण कराया था. 

कहा जाता है कि यह किला 9 मंजिला बनाया गया था, इसलिए इस जगह को नवरत्न गढ़ भी कहा जाता है. जमीन पर इस किले के ध्वंस शेष वर्षों से मौजूद है. अब हाल की पुरातात्विक खुदाई के बाद पहली बार यह पता चला है कि राजा ने जमीन के अंदर भी भव्य महल बनवा रखा था. माना जा रहा है कि मुगल शासकों के हमलों से बचाव के लिए इसका निर्माण कराया गया था. इस भूमिगत महल में एक सुरंगनुमा खुफिया रास्ता भी मिला है, जिसकी खुदाई जारी है. 

भूमिगत महल की संरचना के आधार पर यह अनुमान लगाया जा रहा है कि यहां हीरे-जवाहरात का खजाना रखने की भी कोई गुप्त जगह रही होगी. नवरत्न गढ़ का निर्माण कराने वाले राजा दुर्जन शाल को इतिहास में हीरे के पारखी के रूप में जाना जाता रहा है और इस संबंध में कई कहानियां भी सुनायी जाती रही हैं. इनमें से एक कहानी यह भी है कि ग्वालियर के तत्कालीन शासक इब्राहिम खान ने लगान नहीं चुकाने के कारण दुर्जन शाल को बंदी बना लिया था, लेकिन हीरे का पारखी होने के कारण 12 साल के बाद उन्हें रिहा कर दिया. 

यहां जारी पुरातात्विक खुदाई और सर्वेक्षण का दायरा बहुत बड़ा है. यहां रानी महल, कमल सरोवर, रानी लुकईर ( लुका छुपी) मठ जगन्नाथ, सुभद्रा बलभद्र मंदिर, राज दरबार, तहखाना संत्री पोस्ट, नवरत्नगढ़ के पीछे मुड़हर पहाड़ में जलेश्वर नाथ शिवलिंग, नवरत्न गढ़ से बाहर सिंहद्वार कपिल नाथ मंदिर, भैरवनाथ मंदिर, राधा कृष्ण मंदिर, धोबी मठ, राजगुरु समाधि स्थल, बउली मठ, वकील मठ, मौसी बाड़ी, जोड़ा नाग मंदिर तक सर्वेक्षण किया जा सकता है.