गौ माता को समर्पित यह पर्व भाद्र मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। कहीं-कहीं इसे बछ बारस भी कहा जाता है। इस दिन बछड़े वाली गाय की पूजा करने के साथ गौ रक्षा का संकल्प भी किया जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि 10 सितंबर को रात 9 बजकर 28 मिनट से आरंभ हो रही है और इसका समापन अगले दिन यानी 11 सितंबर को रात 11 बजकर 52 मिनट पर हो जाएगा। ऐसे में गोवत्स द्वादशी का व्रत पूजन 11 सितंबर को करना उत्तम रहेगा। इस दिन पूजा का उत्तम मुहूर्त सुबह 4 बजकर 32 मिनट से सुबह 6 बजकर 3 मिनट तक का है।

गोवत्स द्वादशी का महत्व
मान्यता है कि इस दिन पूजा पाठ करने से भगवान कृष्ण संतान की हर संकट से रक्षा करते हैं। वही योग्य संतान की प्राप्ति की मंगल कामना के लिए भी इस दिन व्रत पूजन किया जाता है। भविष्य पुराण के अनुसार इस व्रत के प्रभाव से व्रती सभी सुखों को भोगते हुए अंत में गौ के जितने रोएं हैं, उतने वर्षों तक गौलोक में वास करता है। बछ बारस शुरू होने के पीछे पौराणिक मान्यता यह है कि भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौ माता का दर्शन और पूजन किया था।

पूजाविधि
इस दिन सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद गाय (दूध देने वाली) को उसके बछडे़ सहित स्नान करवाएं। गाय और बछड़ों को नहलाने के बाद उन दोनों को नया वस्त्र ओढ़ाएं। फूलों की माला पहनाएं। गाय और बछड़े के माथे पर चंदन का तिलक लगाएं। मन ही मन कामधेनु का स्मरण करते रहें। बर्तन में चावल, तिल, जल, सुगंध मिलाकर, नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए गाय के पैर धोएं।
क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते।
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:॥

इसके बाद गाय के पैरों में लगी मिट्टी से अपने माथे पर तिलक लगाएं, इसके बाद गौ माता की आरती करें और बछ बारस की कथा सुनें। गाय की पूजा कर,गाय को स्पर्श करते हुए क्षमा याचना कर परिक्रमा की जाती है । यदि घर के आस-पास गाय व बछड़े नहीं मिलें तो शुद्ध गीली मिट्टी के गाय-बछड़े बनाकर उनकी पूजा करने का भी विधान है ।ऐसी भी प्रथा है कि इस दिन महिलाऐं चाकू से कटा हुआ न तो बनाती है न खाती है।इस दिन गाय के दूध से बने उत्पाद जैसे दही, मक्खन आदि न खाएं।

कथा
जब पहली बार भगवान श्रीकृष्ण जंगल में गाय बछड़ों को चलाने गए थे। उस दिन माता यशोदा ने भारी मन से श्रीकृष्ण का श्रृंगार कर उन्हें गोचारण के लिए तैयार किया था। पूजा-पाठ के बाद गोपाल ने बछड़े को खोल दिया। उनके साथ ही माता यशोदा ने उनके बड़े भाई को भी भेजा और साथ में सख्त निर्देश दिया कि बछड़ों को चराने के लिए बहुत अधिक दूर तक जाने की कोई जरूरत नहीं हैं। आसपास ही गायों और बछड़ों को चराते रहना। इतना ही नहीं मां ने यह भी कहा कि कृष्ण को अकेले बिल्कुल भी न छोड़ना, क्योंकि वह अभी बहुत छोटा है। बलराम ने भी श्रीकृष्ण का पूरा ध्यान रखा और मां के निर्देशों का पालन करते हुए शाम को गायों और बछड़ों के साथ वह लौट आए। मान्यता है कि तब से गोपालक गोवत्सचारण की इस तिथि को गोवत्स द्वादशी के पर्व के रूप में मनाते हैं।