जन्म के कुछ ही घंटों व दिनों बाद नवजातों की मौत होना राज्य सरकार के लिए चिंता का सबब बन चुका है। बच्चों की मृत्यु दर कम करने के लिए सरकार अपनी प्रतिबद्धता कई बार जता चुकी है। लेकिन पहली बार जिला में इसको लेकर अब सार्थक पहल की जा रही है। नवजातों की जान बचाने के लिए अब नियो नेटाल एंबुलेंस की व्यवस्था जिला स्वास्थ्य विभाग करने जा रहा है।

राज्‍य के सभी जिलों को एक-एक नियो नेटाल एंबुलेंस

वैसे तो नवजातों की जान बचाने के लिए कोरोना काल में सदर अस्पताल में 12 बेड वाला एसएनसीयू (स्पेशल नियो नटाल केयर यूनिट) खोला गया था। साथ ही डीएमएफटी मद से विशेषज्ञ चिकित्सकों की तैनाती की गई थी, लेकिन इसके बाद भी नवजातों को कई मामलों में रेफर करना पड़ता है।

इन्हीं बच्चों की जान बचाने के लिए इस विशेष एंबुलेंस का प्रबंध किया गया है, जो नवजात को घर से अस्पताल तक पहुंचाएगा। 108 एंबुलेंस की तर्ज पर इसका संचालन किया जाएगा। राज्य के सभी जिलों को इस तरह की एक-एक एंबुलेंस दी गई है।

यह होती थी परेशानी

अब तक सामान्य एंबुलेंस में शिशु व प्रसूति माता को साथ रेफर करने पर स्वजन को नवजात को गोद में लेकर बैठना पड़ता था। प्रसूति माता को बेसिक लाइफ सपोर्ट या एडवांस लाइफ सपोर्ट की सुविधा मिलती थी, पर बच्चों को नहीं। अब नियो नेटाल एंबुलेंस में नवजात के लिए विशेष सुविधा उपलब्ध होगी। डाक्टर के रेफर के उपरांत इस वाहन से दूसरे जगह अस्पताल तक पहुंचाने में कारगर साबित होगा।

एंबुलेंस में बाॅक्सनुमा केबिन होगा, जिसमें नवजात को रखकर उसे चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध कराते हुए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाया जाएगा। इसमें वार्मर, आक्सीजन, एएमबीयू बैग आदि होगा। इसमें स्वजन के बैठने की भी व्यवस्था होगी।

गौरतलब है कि सदर अस्पताल में स्थित एसएनसीयू में जनवरी से नवंबर 23 तक 722 नवजात को भर्ती कराया गया। इनमें से 446 ठीक होकर लौटे। 42 बच्चों को स्वजन डाक्टर के सलाह के बिना ही चुपचाप लेकर चले गए। चिकित्सीय भाषा में इसे लामा कहा जाता है। 111 को रेफर किया गया। 50 नवजात की मौत हो गई।