झारखंड सूखे की तरफ बढ़ता दिख रहा है। दरअसल राज्य में 45 प्रतिशत बारिश कम हुई है, जिसकी वजह से 85 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि पर फसल नहीं बोई जा सकी है। जो आंकड़े सामने आए हैं, वो डराने वाले हैं। 21 जुलाई तक झारखंड में 28.27 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिर्फ 4.15 लाख हेक्टेयर जमीन पर ही खरीफ की फसल बोई जा सकी है, जो कि खेती योग्य भूमि का सिर्फ 14.71 प्रतिशत है। 

सीएम सोरेन ने जताई चिंता

रिपोर्ट्स के अनुसार, साल 2022 की जुलाई में यह आंकड़ा 20.40 प्रतिशत था। धान की बुआई का यही मौसम है। राज्य में 18 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की बुवाई होती है लेकिन अभी तक महज 11.20 प्रतिशत जमीन पर ही धान की बुवाई हुई है। झारखंड में बीते कुछ सालों में मानसूनी बरसात की आमद में देरी हो रही है, जिसकी वजह से खरीफ फसल के चक्र में देरी होने लगी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी इस पर चिंता जाहिर की है। एक कार्यक्रम के दौरान सीएम ने कहा कि 'जलवायु परिवर्तन के चलते किसानों को खेती के तरीकों में बदलाव करने की जरूरत है।'

अगले सात से आठ दिन अहम

बिरसा मुंडा कृषि विश्वविद्यालय के रिसर्च निदेशक पीके सिंह का कहना है कि अगले सात से आठ दिन बेहद अहम हैं और अगर इन दिनों में अच्छी बारिश हो जाती है तो हालात कुछ सुधर जाएंगे। राज्य के 24 जिलों में से 11 में पांच प्रतिशत से भी कम भूमि में धान की खेती हुई है। सिर्फ सिंहभूम जिले में ही 50 प्रतिशत भूमि पर धान की खेती हुई है। कई किसानों ने धान की नर्सरी तैयार कर ली थी लेकिन कम बारिश की वजह से वह बुवाई नहीं कर सके। कृषि विभाग के निदेशक चंदन कुमार का कहना है कि ना सिर्फ धान बल्कि अन्य फसलें भी कम हो रही हैं। मक्के की बुआई पिछले साल के 50 प्रतिशत के मुकाबले इस साल महज 32 फीसदी ही है। इसी तरह दलहन 14 प्रतिशत, तिलहन 20.05 प्रतिशत क्षेत्र में ही बोयी जा रही है। संभावित सूखे से निपटने के लिए किसानों को बाजरा जैसी कम पानी वाली फसलों को बोने की सलाह दी जा रही है।