भोपाल । मप्र विधानसभा चुनाव का घमासान चरम पर है। स्टार प्रचारकों ने मोर्चा संभाल लिया है। भाजपा के प्रत्याशियों की मांग है कि उनके यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अधिक से अधिक सभाएं और रैली हो, वहीं कांग्रेस का हर प्रत्याशी कांग्रेस महासचिव प्रियंका गंाधी की मांग कर रहा है। दरअसल, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के लिए प्रियंका गांधी की सभाओं को श्रेय दिया जा रहा है। इसलिए कांग्रेस प्रत्याशियों का मानना है कि मोदी-शाह को प्रियंका गांधी ही टक्कर दे सकती हैं। राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं कि चुनाव में जिस नेता की सबसे ज्यादा मांग होती है, वही सबसे ज्यादा सभाएं करता है। यदि भाजपा नेताओं की चुनावी सभाओं का आकलन करें तो सबसे ज्यादा मांग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की है। मोदी की सभाएं प्रत्याशियों की मांग के अनुरूप संभव नहीं है। क्योंकि दूसरे राज्यों में भी उनकी माग है। हालाकि शिवराज सिंह चौहान प्रत्याशियों की माग पर चुनावी सभाएं एवं रोड शो करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
मप्र में 10 दिन बाद मतदान होना है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों का चुनाव-प्रचार चरम पर है। सभी दलों के प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय नेताओं की प्रदेश भर में ताबड़तोड़ सभाएं हो रही हैं। खासकर कांग्रेस और भाजपा के नेताओं की राज्य की अलग-अलग हिस्सों में सभाएं हो रही है। दोनों दलों के राष्ट्रीय नेताओं में प्रमुख रूप से भाजपा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा प्रमुख है। भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में केंद्रीय मंत्री भी मप्र में सभाएं कर रहे हैं। जबकि कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में केंद्रीय नेतृत्व के सिर्फ नेता ही मप्र में प्रचार के लिए आ रहे हैं। इनमें राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े, पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी एवं राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी प्रमुख है। पार्टी के अन्य नेताओं के भी दौरे हो रहे हैं।
खास बात यह है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व में से प्रियंका गांधी ने मप्र में चुनाव प्रचार के मामले में पार्टी के अन्य नेताओं को पीछे धकेल दिया है। यहां तक कि राहुल गांधी भी पिछड़ गए हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से अभी तक मप्र में सबसे ज्यादा जनसभाएं, रोड शो एवं चुनावी कार्यक्रम प्रियंका गांधी के हुए हैं। प्रियंका की संभाओं की मांग भी अन्य नेताओं की अपेक्षा सबसे ज्यादा आ रही हैं। हालांकि पार्टी नेतृत्व मप्र में प्रियंका को उत्तनी सभाएं नहीं करा पा रहा है, जितनी मांग आ रही हैं। अभी तक मप्र विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने के बाद से प्रियंका गांधी मंडला, दमोह और धार में चुनावी सभाएं कर चुकी हैं। जबकि राहुल गांधी की अभी तक मप्र में सिर्फ 10 नवंबर को जनजाति बाहुल्य क्षेत्र शहडोल के ब्यौहारी में एक ही चुनावी सभा हुई है। चुनाव से पहले उनकी मप्र में 3 अलग-अलग क्षेत्रों में 7 सभाएं और रोड शो प्रस्तावित हैं। यह तो साफ है कि कांग्रेस में राहुल गांधी से ज्यादा प्रियंका की सभाओं की माग है। यदि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की चुनावी सभाओं की तुलना करेंगे तो दोनों में काफी ज्यादा अंतर हैं। राहुल गांधी के भाषण की शैली आक्रामक अंदाज वाली है, जबकि प्रियंका गांधी संवाद के अंदाज में भाषण देती हैं। कांग्रेस के अन्य नेताओं की अपेक्षा प्रियंका का यह अंदाज ज्यादा पसंद किया जा रहा है। राहुल गांधी आमतौर पर अपने भाषणों में ऐसा कुछ बोल हैं, जिससे विरोधी दल चुनाव में भुना लेते हैं। अभी तक प्रियंका गांधी ने अपने चुनावी भाषण में ऐसा कुछ नहीं बोला है, जिससे विपक्ष को कांग्रेस की घेराबंदी करने का कोई मौका मिला हो। प्रियंका गांधी हर चुनावी सभा खासकर जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों में ये खुद को अपनी दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पोती के रूप में प्रोजेक्ट कर रही हैं। वे यहा तक कहती है कि लोग कहते हैं कि उनकी शक्ल उनकी दादी से मिलती जुलती है। वे अपने पिता पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और इंदिरा गांधी के समय के किस्से सुनाकर लोगों को जोडऩे की कोशिश कर रही हैं। प्रियका के इस अंदाज को खुद को इंदिरा की पोती के रूप में प्रोजेक्ट करने से जोडक़र बताया जा रहा है।
अगर पिछले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों को देखें तो कांग्रेस प्रियंका गांधी का राहुल की अपेक्षा अधिक उपयोग कर रही है। राहुल गांधी मप्र में 2008 के विधानसभा चुनाव से पार्टी प्रत्याशियों के समर्थन में चुनावी सभाएं करने आ रहे हैं। 2009 में भी उन्होंने लोकसभा चुनाव में प्रचार किया था। 2013 के विधानसभा एवं 2014 के लोकसभा चुनाव में भी वे कांग्रेस के स्टार प्रचार की हैसियत से मप्र में प्रचार के लिए आए थे। इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में भी राहुल गांधी ने मप्र में पार्टी प्रत्याशियों को जिताने के लिए रोड शो एवं चुनावी सभाएं की। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी सभाएं की। जबकि प्रियंका गांधी मप्र विधानसभा चुनाव में पहली बार इतनी सक्रिय हुई है। खास बात यह है कि मप्र में प्रियंका गांधी ने 12 जून को जबलपुर में जनसभा करके विधानसभा चुनाव का शंखनाद किया था। इसके बाद उन्होंने 21 जुलाई को ग्वालियर में सभा कर कांग्रेस में खुद का कद बढ़ा कर लिया। इसके बाद से प्रियंका गांधी मप्र चुनाव में लगातार आगे बढ़ती रहीं। जो अभी भी पाटर्टी के अन्य नेताओं से बढ़त बनाए हुए हैं। वहीं राहुल गांधी ने मप्र में इस साल पहली सभा 20 सितंबर को शाजापुर की कालापीपल विधानसभा में की। यह राहुल गांधी की मप्र में पहली बड़ी चुनावी सभा थी। इस सभा के जरिए गांधी ने मप्र में कांग्रेस की चुनावी घोषणाओं का ऐलान कर दिया था। अभी तक राहुल गांधी मप्र में सिर्फ शाजापुर, शहडोल और सतना में 3 सभाएं करने आए हैं। राहुल गांधी की मप्र में लगातार घटती सक्रियता को चुनाव में उनकी मांग से जोडक़र देखा जा रहा है। वहीं राहुल गांधी को मप्र चुनाव से दूर रखना कांग्रेस की चुनावी रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है।