चंडीगढ़। प्रखर वक्ता और संसदीय मामलों के पुख्ता जानकार वीर दविंदर सिंह आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनसे संबंधित एक किस्सा बहुत मजेदार है जो इस विषय को समझने में मदद करेगा। वीर दविंदर सिंह उन दिनों शिरोमणि अकाली दल,कांग्रेस, बसपा, पीपीपी आदि पार्टियों से होते हुए आप में संभावनाएं तलाश रहे थे।

किस पार्टी पर लगे दांव

एक दिन उनकी पुत्रवधू ने घर की सफाई करते हुए स्टोर से शिअद, बसपा, पीपीपी कांग्रेस पार्टियों के झंडे, गले में डालने वाले पटके,कमीजों पर लगाए जाने वाले चुनाव चिन्हों के बैच और अन्य सामान आदि निकाला और उनसे पूछा, पापा जी किस पार्टी का सामान रखना है। वीर दविंदर ने हंसकर कहा, अभी सभी को पडे़ रहने दो, पता नहीं किस पार्टी में दांव लग जाए।

आकांक्षाएं रह गईं अधूरी

वीर दविंदर सिंह जैसा प्रखर वक्ता जो विधानसभा में होने वाली बहस में हो या रैलियों में या टीवी शो में... अपनी वाकपट़ुता से सभी को कील लेता था। लेकिन वह कभी भी मुख्यधारा की राजनीति में ऊंचे ओहदे तक नहीं पहुंच सके। उनमें जितनी क्षमता थी , उससे कहीं ज्यादा महत्वाकांक्षा थी। एक से दूसरी, दूसरी से तीसरी पार्टी में जाकर उन्होंने अपनी इस महत्वाकांक्षा को पूरा करना चाहा लेकिन खुद पूरे हो गए , आकांक्षाएं अधूरी रह गईं।

वीर दविंदर अकेले ऐसे नहीं हैं। आवाजे-कौम कहे जाने वाले जगमीत बराड़ आज कहां हैं ? यह पता करना पड़ता है। 1992 में जब वह संसद में पहुंचे और उन्होंने अपना पहला भाषण पंजाब की समस्याओं पर दिया तो भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी अपनी सीट से उठकर उन्हें बधाई देने गए।

कांग्रेस से कांग्रेस तिवारी , फिर कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल में गए। सुखवीर बादल जैसे सशक्त नेता को हराने का मौका भी मिला लेकिन उसके बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक जमीन ऐसी गंवाई कि आज भी उसे तलाशते फिर रहे हैं।

इसी कड़ी में एक नाम मनप्रीत बादल का भी है। किसी समय अकाली दल में एक बड़ा नाम था। पार्टी ने उन्हें वित्तमंत्री भी बनाया लेकिन मुख्यमंत्री बनने की लालसा ने उनको भी पटरी से उतार दिया। अपनी पीपल्स पार्टी आफ पंजाब बनाई, फिर कांग्रेस में चले गए। कांग्रेस से भाजपा में शामिल हो गए लेकिन आज कहां हैं।

नवजोत सिंह सिद्धू का नाम भी श्रेणी में शामिल

नवजोत सिंह सिद्धू का नाम भी इसी श्रेणी में है। क्रिकेट को अलविदा कहकर राजनीति की दुनिया में कदम रखने वाले नवजोत सिद्धू इन दिनों आईपीएल में कमेंटरी कर रहे हैं। रघुनंदन लाल भाटिया जैसे कद्दावर कांग्रेस नेता को हराने, अपनी भाषण शैली से विरोधियों को चित करने वाले सिद्धू को आज कोई भी उम्मीदवार अपने चुनाव प्रचार में निमंत्रण नहीं देना चाहता।

2014 में सिद्धू का नाम था सबसे ऊपर

2014 में भाजपा की स्टार प्रचारकों में ऊपरी पायदान पर रहने वाले सिद्धू की यह हालत भी उनकी महत्वाकांक्षा के कारण हुई है। पार्टी बदलना , अपना दल बनाना उन्हें रास नहीं आया। कुछ ऐसे नाम भी हैं जिन्होंने पार्टियां बदलीं ,अपने दल बनाए और अपने संबंधों के कारण सभी जगह नाम भी कमाया। उनमें एक नाम बलवंत सिंह रामूवालिया का भी है।

रामूवालिया, शिरोमणि अकाली दल के किसी समय दिग्गज नेता थे लेकिन पार्टी बदलने के बाद उन्होंने अपनी लोकभलाई पार्टी बनाई और तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्द्र कुमार गुजराल की कैबिनेट में भी रहे। अकाली दल में वापसी की और चुनाव हारने के बाद हैरानीजनक तरीके से उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार में मंत्री बन गए।