शिमला । कभी कांग्रेस का अभेद्य किला रहे हिमाचल की शिमला संसदीय सीट पर पिछली तीन बार से भाजपा का कब्जा है। कांग्रेस को अपना दुर्ग फिर से लेना है, तब कांग्रेस को चक्रव्यूह रचना होगा। यह संसदीय सीट हमेशा सत्ता का केंद्र रही है। कांग्रेस के कृष्ण दत्त (केडी) सुल्तानपुरी यहां से लगातार छह बार सांसद रहे हैं। सुल्तानपुरी प्रदेश के पहले सांसद हैं जिनके नाम यह रिकॉर्ड है। भाजपा कांगड़ा की तरह यहां से भी जीत का चौका लगाना चाहेगी तब प्रदेश में सत्ताधारी कांग्रेस को केडी की विरासत वापस लेने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। उधर, भाजपा ने शिमला से सांसद सुरेश कश्यप को टिकट देकर मनोवैज्ञानिक बढ़त ले ली है। 
शिमला संसदीय सीट का ज्यादातर क्षेत्र पहाड़ी है। 1977 में पहली बार भारतीय लोक दल के बालक राम यहां से सांसद चुने गए। इसके बाद 1980 से 1998 तक कांग्रेस के कृष्ण दत्त सुल्तानपुरी ने लगातार छह बार जीत दर्ज की। उनके सामने कोई भी धुरंधर टिक नहीं सका। इसके बाद धनी राम शांडिल ने 1999 में हिमाचल विकास कांग्रेस से चुनाव लड़कर कांग्रेस के किले में सेंधमारी की। 2004 में हुए चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर फिर जीत दर्ज की। 2009 से अब तक हुए तीन चुनावों में दो बार वीरेंद्र कश्यप और एक बार सुरेश कश्यप ने सीट जीती और भाजपा की हैट्रिक लगाई। पिछले तीन चुनावों से भाजपा की जीत का अंतर हर बार बढ़ा है। 2014 में भाजपा करीब 84 हजार मतों से जीती। 2019 में यह अंतर 3 लाख 27 हजार हो गया। भाजपा को इस बार भी मोदी फैक्टर की आस है। कांग्रेस के पास शिमला को सरकार में प्रतिनिधित्व देने में विशेष तरजीह देने का तर्क है। शिमला संसदीय क्षेत्र में अर्की, नालागढ़, दून, सोलन, कसौली, पच्छाद, नाहन, श्रीरेणुकाजी, पांवटा साहिब, शिलाई, चौपाल, ठियोग, कसुम्पटी, शिमला शहरी, शिमला ग्रामीण, जुब्बल-कोटखाई और रोहड़ू विधानसभा क्षेत्र आते हैं।
टिकटों के लिए कांग्रेस में मंथन जारी है। अमित नंदा, दयाल प्यारी, कौशल मुंगटा, सोहन लाल सहित कई नाम चर्चा में हैं। शिमला संसदीय क्षेत्र में कुल जनसंख्या का 26.51 फीसदी भाग अनुसूचित जाति से संबंधित है। सिरमौर जिले के बड़े इलाके में अनुसूचित जनजाति के लोग रहते हैं। सोलन में 28.35 फीसदी अनुसूचित जाति, जबकि 4.42 फीसदी लोग अनुसूचित जनजाति के हैं। सिरमौर में 30.34 फीसदी अनुसूचित जाति के लोग हैं। यहां पहले केवल 2.13 फीसदी जनसंख्या अनुसूचित जनजाति की थी।