पूर्वी लद्दाख में सेना ने अपने बुनियादी ढांचे को मज़बूत किया
नई दिल्ली । पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर सेना अपने बुनियादी ढांचे को तेजी से विकसित कर रही है। खासकर गलवान घाटी में चीन के साथ हुए खूनी संघर्ष के बाद अपनी क्षमता बढ़ाने पर सेना ने खासा जोर दिया है। इसमें सैनिकों के रहने के लिए नए आवास से लेकर पेट्रोलिंग के लिए बोट के साथ-साथ रोड कनेक्टिविटी के लिए सड़क और नए पुल बनाने का काम युद्द स्तर पर किया जा रहा है। लद्दाख पहुंचने के लिए कई वैकल्पिक रास्तों का निमार्ण भी किया जा रहा है, ताकि सालों भर आवाजाही का रास्ता बना रहे।
पूर्वी लद्दाख के हाई एलटिच्यूड इलाके में जहां पहले करीब 10 हजार जवानों के रहने का इंतजाम था, अब वह संख्या 22 हजार तक जा पहुंची है। यहां केवल सैनिकों के रहने के लिए ढ़ांचा ही तैयार नहीं किया गया है, बल्कि पानी और बिजली समेत तमाम सुविधाओं का इंतजाम किया गया है। जवानों को पीने का स्वच्छ पानी मुहैया कराने के लिए तालाब बनाए गए हैं, ताकि उनको सालों भर पीने को ताजा पानी मिल सके। ये घर ऐसे हैं कि जिन्हें कहीं भी 2-3 दिनों के भीतर ले जाया जा सकता है। ये पूरी तरह से आधुनिक और कॉम्पैक्ट हैं। ये शेल्टर 15000, 16000 और 18000 फीट की ऊंचाई पर स्थापित किए गए हैं।
सैनिकों के लिए सेना ने बख्तरबंद वाहनों और गन सिस्टम को रखने के लिए 450 ऐसे तकनीकी भंडार बनाए हैं, जहां पर कम तापमान में भी वाहनों और हथियार प्रणालियों की दक्षता कम नहीं हो सके। फ्रंट लाइन के बंकरों पर ऐसे थ्री डी प्रिंटिंग डिफेंस स्ट्रक्चर्स या 3डी बंकर तैनात किये जा रहे हैं, जिससे बंकर पर अगर टी-90 जैसे टैंक से 100 मीटर की दूरी से हमला किये जाएं, तब भी वे इसका सामना कर पाएंगे।
इतना ही नहीं लद्दाख में कठोर मौसम को मात देने के लिए सेना ने जवानों के लिए 20 सौर उर्जा से चलने वाले लद्दाखी शेल्टर बनाए हैं। जहां एक इकाई में 3-4 सैनिक रह सकते हैं। इसमें जब बाहर का तापमान -20 डिग्री में होता है तो अंदर का 20 डिग्री तापमान होता है। यह सैनिकों को गर्म रखता है।
हाल ही में सेना ने पहली बार उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्र में सर्वत्र और पीएमएस सहित असॉल्ट ब्रिज के निर्माण के लिए सफलतापूर्वक परीक्षण किया। DRDO द्वारा विकसित और BEML द्वारा बनाया गया, सर्वत्र ब्रिज सिस्टम पूरी तरह से स्वदेशी, उच्च गतिशीलता वाले वाहन-आधारित, मल्टी स्पैन मोबाइल ब्रिजिंग सिस्टम है। कोशिश यह हो रही है कि चीन से सीमा पर आवाजाही में कोई दिक्कत ना हो। बड़ी तदाद में सड़कों का जाल फैलाया जा रहा है। नये पुल बनाये जा रहे हैं।
जैसे लेह से पहले डीबीओ यानि कि दौलत बेग ओल्डी एयरबेस जाने में सात दिन लगते थे, फिर दो दिन लगने लगा और अब मात्र छह घंटे में लेह से डीबीओ आसानी से पहुंचा जा सकता है। पैंगोंग त्सो झील में गश्त करने की क्षमता को बढ़ाने के लिए नए लैंडिंग क्राफ्ट शामिल किए गए हैं। इससे पेट्रोलिंग में काफी मदद मिली है। यह 35 सैनिकों या 1 जीप और 12 पुरुषों को ले जा सकता है।