7 सीटें बनी कांग्रेस के लिए कसौटी
भोपाल । प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों का सियासी ट्रेंड बीते 35 साल से लगभग एक जैसा ही रहा है। उसका मुख्य कारण है- दिल्ली की हवा का प्रदेश के वोटर के दिमाग पर हावी होना। सिर्फ 2009 में ही ऐसा हुआ, जब कांग्रेस को 29 में से 12 सीटें मिली थीं जो कि 2004 के परिणामों से 8 सीटें ज्यादा थीं और भाजपा की सीटें 2004 की तुलना में 25 से घटकर 16 रह गई थीं। तब भी दिल्ली में यूपीए की सरकार थी। प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 14 ऐसी हैं, जहां भाजपा बीते दो दशक से नहीं हारी, जबकि तीन सीटें लंबे समय से कांग्रेस का गढ़ हैं। 12 सीटें ऐसी जहां भाजपा-कांग्रेस बारी-बारी से जीतती रही हैं। इस बार भी चुनाव में दिल्ली के मुद्दों की गूंज है। मोदी की गारंटी के दम पर भाजपा प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने का दम भर रही है। वहीं कांग्रेस के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है हार के अंतर को कम करना। इस कड़ी में सात सीटें होशंगाबाद, इंदौर, विदिशा, खजुराहो, जबलपुर, राजगढ़ और शहडोल सीट ऐसी है जहां पिछले चुनाव में कांग्रेस को लाखों के अंतर से हार मिली थी।
मिशन 2024 के लिए भाजपा ने सभी 29 तो कांग्रेस ने अभी 22 प्रत्याशियों की ही घोषणा की है। इस बार भाजपा का लक्ष्य प्रदेश की सभी 29 सीटें जीतने का है। दरअसल, लोकसभा के पिछले दो चुनावों से मध्यप्रदेश में भाजपा की सियासी ताकत तेजी से बढ़ी है। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 16 सीटों पर जीत हासिल हुई थी, लेकिन उसके बाद के दो चुनाव में भाजपा ने बेहद करिश्माई प्रदर्शन किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे के दम पर साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 29 में से 27 और उसके बाद हुए 2019 के चुनाव में भाजपा को 28 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इस तरह का जबरदस्त प्रदर्शन अब तक कोई भी सियासी दल नहीं कर पाया है।
भाजपा के बढ़ते वोट को रोकना बड़ी चुनौती
प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस केवल एक मात्र छिंदवाड़ा सीट पर मजबूत दिख रही है। ऐसे में कहा जा रहा है कि कांग्रेस की सबसे बड़ी सफलता होगी भाजपा के बढ़ते वोट को रोकना। खास कर साम सीटों पर सबकी नजर है। 2019 में प्रदेश की सात सीटें ऐसी थीं, जहां पर भाजपा को चार लाख से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल हुई थी। सबसे बड़ी जीत होशंगाबाद में मिली थी, जहां पर भाजपा के राव उदय प्रताप सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी शैलेंद्र दीवान को 5,53,682 मतों के अंतर से पराजित किया था। होशंगाबाद की विजय देश के टॉप-10 में शामिल थीं। इंदौर और विदिशा लोकसभा सीट भी भाजपा ने पांच लाख मतों के अंतर से जीती थी। इसके अलावा खजुराहो, जबलपुर, राजगढ़ और शहडोल सीट में भाजपा को चार लाख मतों के अंतर से जीत नसीब हुई। ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार के चुनाव में कांग्रेस सात सीटों में मुकाबले से तकरीबन बाहर है। कांग्रेस का फोकस जीत की चुनौती पेश करने से ज्यादा अहम बड़ी जीत के अंतर को कम करने पर होगा। मध्यप्रदेश की होशंगाबाद लोकसभा सीट के बाद दूसरा नंबर इंदौर और तीसरा नंबर विदिशा का था। इंदौर सीट पर भाजपा के शंकर लालवानी ने कांग्रेस प्रत्याशी पंकज सिंघवी को 5,47,754 मतों के अंतर से पराजित किया था। विदिशा सीट पर भाजपा के रमाकांत भार्गव ने कांग्रेस के शैलेंद्र पटेल को 5,03,084 मतों के अंतर से पराजित किया था। यह बात दीगर है कि इस बार के चुनाव में भाजपा के दोनों उम्मीदवार मैदान में नहीं हैं। राव विधानसभा चुनाव जीतकर प्रदेश सरकार में मंत्री हैं और भार्गव का टिकट काटकर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को विदिशा से मैदान में उतारा गया है। तीन सीटें ऐसी थीं, जहां पर भाजपा ने चार लाख से ज्यादा मतों के अंतर से चुनाव जीता था। खजुराहो सीट पर भाजपा के विष्णुदत्त शर्मा ने कांग्रेस की कविता सिंह को 4,92,382 मतों से शिकस्त दी थी। शर्मा फिर से चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस ने यह सीट समझौता फार्मूले में समाजवादी पार्टी को दी है। जबलपुर सीट से भाजपा के राकेश सिंह ने कांग्रेस के कद्दावर नेता विवेक तन्खा को 4,54744 मतों से पराजित किया था। सिंह प्रदेश सरकार में मंत्री हैं। इस बार भाजपा ने आशीष दुबे को मौका दिया है। राजगढ़ सीट से भाजपा के रोडमल नागर ने कांग्रेस की मोना सुस्तानी को 4,31019 और शहडोल में भाजपा की हिमाद्री सिंह ने कांग्रेस की प्रमिला सिंह को 4.03.333 मतों के अंतर से पराजित किया था।