मादा घड़ियाल के इन अंडों को चंबल के घाटों से लाने के बाद ईको सेंटर की हैचरी में चंबल की ही तरह रेत में करीब एक फीट नीचे दबाकर घोंसले की तरह रखा गया था। इसके बाद अंडों से बच्चे बाहर निकल आए हैं। खास बात यह रहती है कि जितने टेंपरेचर से अंडे कलेक्ट किए जाते हैं। ईको सेंटर में उसी तापमान के मुताबिक उन्हें रखा जाता है। घड़ियाल के बच्चों को तीन साल तक देवरी घड़ियाल केंद्र पर पाला जाएगा। फिर 180 सेमी लंबाई होने पर इनको चंबल नदी में छोड़ दिया जाएगा।

चंबल नदी में सर्वाधिक घड़ियाल पाए जाते हैं, मध्य प्रदेश की सोन नदी और केन नदी में भी घड़ियाल

डीएफओ स्वरूप दीक्षित ने बताया घड़ियाल केन्द्र पर हर साल 200 अंडों की हेचिंग कर घड़ियाल के बच्चे निकाले जाते हैं। उसके बाद इनका केन्द्र पर लालन पालन किया जाता है। हर साल चंबल नदी के अलग-अलग घाटों से अंडे कलेक्ट किए जाते हैं। इस साल भी 16 मई को अंबाह क्षेत्र के बाबू सिंह का घेर, देवगढ़ और धौलपुर के बसई डांग क्षेत्र से 200 अंडे कलेक्ट किए गए थे। उनको देवरी केन्द्र पर रेत में उसी तापमान में रखा गया था। जिस तापमान पर रेत से अंडे कलेक्ट किए गए। 30 मई से हेचिंग कराई गई और 10 जून तक 200 अंडे से हेचिंग हुई, जिनमें से 192 बच्चे बाहर आ चुके हैं, जबकि 8 अंडे खराब हो गए। उन्होंने बताया मध्य प्रदेश की सोन नदी और केन नदी में भी घड़ियाल पाए जाते हैं, लेकिन चंबल नदी में सर्वाधिक घड़ियाल पाए जाते हैं। 

अंडों से आवाज आने पर उनको थपथपाया जाता है, तो निकल पड़ते हैं घड़ियाल के बच्चे

डीएफओ स्वरूप दीक्षित ने बताया घड़ियाल के बच्चों को तीन साल तक देवरी घड़ियाल केन्द्र पर पाला जाता है। इस दौरान उनका केन्द्र पर पूरा ख्याल रखा जाता है। समय-समय पर उनका स्वास्थ्य चेकअप होता है। इसके लिए प्रतिदिन तापमान चेक कर मेंटेन किया जाता है। अंडों से आवाज आने पर उनको ऊपर से थपथपाया जाता है। उसके बाद बच्चे बाहर निकलना शुरू हो जाते हैं। डीएफओ दीक्षित के अनुसार घड़ियाल मादा मार्च के दूसरे सप्ताह यानी 15 मार्च के आसपास ही अंडे दे देती हैं। इसके बाद मई के तीसरे हफ्ते यानी 30 मई से लेकर जून के पहले हफ्ते यानी 10 मई तक अंडों को रेत से बाहर निकालने का सिलसिला शुरू हो जाता है। विशेषज्ञ रेत को ऊपर से थपथपाते हैं, इसके बाद अंडों में से आने वाली हल्की सी आवाज को सुनते हैं। इसके बाद देखते ही देखते घड़ियाल बाहर निकलकर दौड़ने लगते हैं।

घड़ियाल के नन्हें बच्चों के बारे में कुछ खास बातें

जन्म के समय घड़ियाल के बच्चों का वजन 125 ग्राम तक होता है। जन्म के साथ ही बच्चे अपने योक में 10 दिन का भोजन लेकर पैदा होते हैं। 3 से 4 दिन तक घड़ियालों को जिंदा जीरो साइज फिश कर्मचारी अपने हाथों से खिलाते हैं। तीन साल तक इनकी विशेष देखरेख होती है, जिसके बाद ये 120 सेंटीमीटर लंबाई हासिल कर लेते हैं। चौथा साल लगते ही इन्हें चंबल में छोड़ दिया जाता है।

चंबल में घड़ियालों का बढ़ा कुनबा

राष्ट्रीय चंबल अभयारण्य में घड़ियालों की बढ़ती संख्या से वन्यजीव प्रेमियों में खुशी देखी जा रही है। वन विभाग अब चंबल नदी में कैरिंग कैपेसिटी का अध्ययन करवा रहा है। रिसर्च टीम देखेगी कि यहां घड़ियाल के साथ-साथ अन्य जलीय जीवों की संख्या क्षमता से अधिक तो नहीं हो रही। घड़ियाल, मगरमच्छ, डॉल्फिन सहित जलीय जीवों की संतुलित संख्या होनी चाहिए, ताकि पर्याप्त भोजन के साथ सभी सुरक्षित रहें। डीएफओ स्वरूप दीक्षित ने बताया 1980 में जब चम्बल में घड़ियाल प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। तत्कालीन समय पर 150 घड़ियाल चम्बल में छोड़े गए थे। 4 दशक में घड़ियालों की आबादी 14 गुना बढ़ गई है। 2022 के आंकड़ों में नदी में 2014 घड़ियाल मिले थे। इनमें 400 से ज्यादा मादा है। मादा घड़ियाल साल में एक बार 40 तक अंडे देती है। रिसर्चर इसे बेहतर मान रहे हैं। डीएफओ का कहना है की चंबल नदी में घड़ियालों की जो संख्या बढ़ रही है, वह वन विभाग के अथक प्रयासों का परिणाम है। नए सर्वे में जलीय जीवों की संख्या पिछले साल की अपेक्षा बढ़कर आई है। इसमे घड़ियाल के साथ साथ मगरमच्छ, डॉल्फिन की संख्या भी अधिक पाई गई है। चंबल नदी की क्षमता के अनुसार जलीय जीवों की संख्या कितनी होनी चाहिए इसके लिए वन विभाग कैरिंग कैपिसिटी का सर्वे करा रहा है। कैरिंग कैपिसिटी सर्वे के अनुसार अगर चंबल नदी की क्षमता पूरी हो चुकी है, तो आगामी समय में घड़ियाल गैप के साथ भारत की अन्य नदियों में छोड़ने पर विचार किया जा सकता है।

डॉल्फिन 96 और मगरमच्छों की संख्या हुई 868

अभी हाल ही में हर साल की तरह चंबल नदी में एक सर्वे किया गया था। यह सर्वे श्योपुर की पार्वती नदी से लेकर भिंड तक किया गया है। 15 दिन तक चले इस सर्वे के दौरान जलीय जीवों का जो आंकड़ा सामने आया है, उसमे डॉल्फिन की संख्या बढ़कर 96 हो गई है। इसके साथ ही घड़ियाल 2108 और मगरमच्छ 868 पाए गए हैं।