मुंबई । बॉम्बे उच्च न्यायालय का कहना है कि मुंबई की आरे कॉलोनी में मेट्रो रेल कार शेड के निर्माण के लिए पेड़ों की कटाई के खिलाफ एक आईएएस अधिकारी को भेजे गए संदेश आपत्तिजनक नहीं थे, बल्कि यह इस देश के नागरिक का लोकतांत्रिक अधिकार है ताकि वह अपने विचार व विरोध दर्ज करा सके। पीठ ने पांच अप्रैल को बेंगलुरु निवासी अविजीत माइकल के खिलाफ जनवरी 2018 में दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द कर दिया।
न्यायमूर्ति सुनील शुक्रे और न्यायमूर्ति मिलिंद एस। की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के मामले के लिए प्राथमिकी दर्ज करना इस देश के नागरिकों के अधिकारों का हनन होगा।
पीठ ने पांच अप्रैल को बेंगलुरु निवासी अविजीत माइकल के खिलाफ जनवरी 2018 में दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द कर दिया, जिसमें आईएएस अधिकारी अश्विनी भिडे को आपत्तिजनक संदेश भेजने के आरोप में उनके खिलाफ उपनगरीय बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) थाने में मामला दर्ज किया गया था। भिडे उस समय मुंबई मेट्रो रेल निगम की प्रमुख थीं।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि ऐसा लगता है कि इन संदेशों को भेजने वाले की मंशा वन संरक्षण है, जिसे वह मुंबई के लिए फेफड़े की तरह काम करने वाला मानता है। अदालत ने कहा कि इस तरह की शिकायत मिलने पर पुलिस को देश के किसी भी आम नागरिक पर आपराधिक कानून के तहत मामला दर्ज नहीं करना चाहिए, चाहे शिकायतकर्ता किसी भी उच्च पद पर ही क्यों न हो।