भारत में जगन्नाथपुरी , तिरुपति बालाजी , पंढरपुर , कांचीपुरम , महाकाल  जैसे असंख्य प्रसिद्ध मंदिर पहले के बौद्ध विहार , बौद्ध स्तूप और बौद्ध चैत्य हैं . यह सभी मंदिर पुरोहितों के आर्थिक आय के बड़े स्रोत बन गए हैं . ऐसे में यह सभी मंदिर पुरोहितों से लेकर बौद्धों को हस्तांतरित करने की मांग वरिष्ठ साहित्यिक डॉ . प्रदीप आगलावे ने एक पत्रक के माध्यम से की है . डॉ . प्रदीप आगलावे का कहना है कि अनुसंधानकर्ताओं ने भारत के अनेक प्रसिद्ध मंदिर पूर्व में बौद्ध विहार थे , यह साबित किया है . प्रबोधनकार केशव ठाकरे ने देवल का धर्म और धर्मों के देवल ' ( 1929 ) नामक पुस्तक में स्पष्ट उल्लेख किया है . अनेक इलाकों के बौद्ध विहारों की पवित्र वास्तु और बौद्ध मूर्तियों में बदलाव कर भगवान शंकर के मंदिर बना दिए गए . डॉ . आगलावे ने कहा कि महाराष्ट्र के अनेक मंदिर पूर्व में प्रसिद्ध बौद्ध स्थल थे . वहां के विविध बौद्ध प्रतीकों से यह सिद्ध भी होता है . डॉ . बाबासाहब आंबेडकर ने 25 दिसंबर 1954 के एक भाषण में बताया था कि पांडुरंग यानी पंढरपुर में बौद्ध धर्म के देवालय थे . यह मैं साबित कर सकता हूं . उन्होंने कहा कि वैदिकों में यज्ञ की संकल्पना थी . परंतु , उनमें मंदिर की परंपरा नहीं थी . इसीलिए किसी भी उत्खनन में डेढ़ से दो हजार वर्ष पहले वैदिकों या शैव और वैष्णव .पंथ की मूर्तियां नहीं दिखती है . केवल ईसवीं सन 700 से 800 की शताब्दी की मूर्तियां मिलती है , डॉ . आगलावे ने कहा कि अंग्रेज पुरातत्व विशेषज्ञों ने बेहद प्रामाणिकता से अनुसंधान करके उत्खनन में प्राप्त सबूतों के आधार पर देश के बौद्ध धर्म के इतिहास को लिपिबद्ध किया है . बुद्धगया में सिद्धार्थ गौतम को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी