पंजाब | हरियाणा हाईकोर्ट ने बच्ची की कस्टडी से जुड़ी मां की याचिका को खारिज करते हुए स्पष्ट कर दिया कि कस्टडी देते हुए यह जानना बेहद जरूरी है कि बच्ची किसके साथ रहना चाहती है। हाईकोर्ट ने कहा कि माता-पिता के दावे से ज्यादा बच्चे का कल्याण और भला देखना जरूरी है। फाजिल्का निवासी महिला ने याचिका दाखिल करते हुए बताया कि उसका विवाह 2014 में हुआ था और 2015 में उनकी बेटी हुई थी। 

याची व उसके पति के बीच लगातार विवाद बना रहता था इसलिए वह सितंबर 2020 को बेटी के साथ घर छोड़ कर जाने लगी। ऐसा करने पर पति और उसके रिश्तेदारों ने  याची से मारपीट की और बेटी को लाने नहीं दिया। निचली अदालत ने इस मामले में यथास्थिति बनाये रखने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट में बच्ची की कस्टडी के लिए दाखिल महिला की याचिका पर पति ने कहा कि उसकी पत्नी की घर में कलह करती थी और खुद घर छोड़ कर गई है। 

वह अपनी बेटी की बेहतर देखभाल कर रहा है। शहर के सबसे बेहतरीन स्कूल में पढ़ाई करवा रहा है। बेटी भी उसके साथ बहुत खुश है। जब कोर्ट ने बेटी से पूछा तो उसने अपनी मां के बजाय पिता और दादा-दादी के साथ ही रहने की इच्छा जताई। इसके बाद पांच साल की बच्ची की कस्टडी की मांग को लेकर दाखिल मां की याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया। 

हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चे की कस्टडी के मामले में माता-पिता का अधिकार ही सर्वोपरि नहीं है बल्कि यह भी देखना बेहद जरूरी है कि बच्ची का भला  और कल्याण किसके साथ है। साथ ही यह भी देखना जरूरी है कि बच्ची किसके साथ रहना चाहती है। हाईकोर्ट ने बच्ची को उसके पिता, दादा और दादी के साथ ही रहने का आदेश दिया है।