नई दिल्ली । अपनी तमाम सैनिक ताकत के बाद भी चीन ने अभी तक ताइवान पर हमले की जोखिम नहीं उठाया है, तब इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ताइवान का मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम है। ताइवान ने चीन के हवाई हमले के खतरे को नाकाम करने के लिए कई मिसाइलों से एक मजबूत एयर डिफेंस सिस्टम तैयार किया है। जिसमें हार्पून और पैट्रियट जैसी अमेरिकी मिसाइलों से लेकर स्वदेशी रूप से विकसित टीएन कुंग 3 (टीके-3) जैसी मिसाइलें शामिल हैं।
ताइवान की हार्पून तटीय रक्षा प्रणाली की रेंज लगभग 125 किलोमीटर है। इसके अलावा ताइवान के पास सुपरसोनिक मिसाइल ह्सिउंग फेंग तृतीय है, जिसकी रेंज लगभग 250 मील है। हार्पून और ह्सिउंग फेंग तृतीय जैसी मिसाइल प्रणालियां चीन की सैन्य ताकत के खिलाफ एक बड़े मजबूत अवरोध का काम करेंगी। जबकि पैट्रियट एडवांस्ड कैपेबिलिटी-3 मिसाइलें किसी भी चीनी हवाई हमले को नाकाम करने की ताकत रखती हैं।
ताइवान का भरोसा स्वदेशी रूप से विकसित टीएन कुंग 3 (टीके-3) एयर डिफेंस सिस्टम पर भी है, जिसे बैलिस्टिक मिसाइलों का मुकाबला करने और पुरानी हॉक मिसाइल प्रणाली को बदलने के लिए डिजाइन किया गया है।
टीके-3 को पहले टीके-2 एंटी-टैक्टिकल बैलिस्टिक मिसाइल के रूप में जाना जाता था। टीके-3 एक आयातित केयू-बैंड रडार के साथ कई वारहेड वाली और उच्च गति वाली मिसाइल है। जो एक साथ कई बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने के लिए बेहतर काम करती है।
 साथ ही इम्प्रूव्ड हॉक सिस्टम ताइवान के एयर डिफेंस का मुख्य आधार बना हुआ है। इसके साथ ही चीन के बढ़ते खतरे को देखकर ताइवान ने संशोधित वायु रक्षा प्रणाली (एमएडीएस) को तैनात किया है। ये सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणाली पैट्रियट मिसाइलों का एक उन्नत संस्करण है। जिसका उपयोग इराक में ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म के दौरान किया गया था। एमएडीएस 1997 में ताइवान पहुंचना शुरू हुई थी। इस भारी आबादी वाले ताइपेइ के आसपास तैनात किया गया है। जिससे किसी भी हवाई हमले से नागरिकों को सुरक्षित रखा जा सके।