भुवनेश्वर । जगन्नाथ पुरी क्षेत्र परमब्रह्म परमात्मा का नित्य लीला स्थल माना जाता है। श्रीमंदिर में विराजमान महाप्रभु भक्तों के साथ विभिन्न उत्सव में अपनी लीला करते हैं। मानवीय लीला करने वाले दारूविग्रह विभिन्न पर्व के समय नाना प्रकार के वेश में सज्जित होकर भक्तों को दर्शन देते हैं। हालांकि श्रीमंदिर की सबसे बड़ी यात्रा रथयात्रा होती है। महाप्रभु जगत के नाथ हैं और सभी के प्रिय हैं। वह भक्ति के भाव में बंधे हैं। 
भक्तों की पुकार सुनकर वह रत्न सिंहासन से बड़दांड को आते हैं और अपने प्रिय भक्तों को दर्शन देते हैं। इसके लिए हर साल जगन्नाथ धाम में तीन नए रथ का निर्माण किया जाता है, जिनका कार्य अब लगभग समाप्ति की तरफ पहुंच गया है। तीनों ही रथ लगभग 90 प्रतिशत बनकर तैयार हो गए हैं, रथों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। रथ में लगने वाले 27 पार्श्व देवि देवताओं के रंगरोदन का कार्य युद्ध स्तर पर किया जा रहा है। आगामी आषाढ़ शुक्ल द्वितीय तिथि अर्थात 1 जुलाई 2022 को चतुर्धा विग्रह रथों पर विराजमान होकर भक्तों को दर्शन देंगे।
जानकारी के मुताबिक कोरोना महामारी के कारण दो साल बाद इस साल पुरी जगन्नाथ धाम में एक जुलाई 2022 को महाप्रभु जगन्नाथ जी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा निकाली जाएगी। इसके लिए श्रीमंदिर के सामने रथखला में तीन रथ जगन्नाथ जी का नंदीघोष रथ, बलभद्र जी का तालध्वज रथ एवं देवि सुभद्रा जी का दर्प दलन रथ का निर्माण कार्य लगभग 90 प्रतिशत खत्म हो गया है। 
जगन्नाथ जी के रथ नंदीघोष रथ के निर्माण में 742 लकड़ी का प्रयोग किया गया है, जबकि बलभद्र जी रथ तालध्वज में रथ को निर्माण करने में 731 लकड़ी का प्रयोग किया गया है। उसी तरह से देवि सुभद्रा जी के रथ दर्प दलन रथ में 711 लकड़ी का प्रयोग किया गया है। जगन्नाथ जी के रथ नंदीघोष रथ की ऊंचाई 45 फुट 6 इंच है, जबकि बलभद्र जी के रथ तालध्वज रथ की ऊंचाई 45 फुट एवं देवि सुभद्रा जी के रथ दर्पदलन रथ की ऊंचाई 44 फुट 6 इंच है। नंदीघोष रथ में 16 पहिए लगाए गए हैं, जबकि तालध्वज रथ में 14 पहिया एवं दर्पदल रथ में 12 पहिए लगाए गए हैं।
रथों के निर्माण के साथ ही तीनों रथों में विभिन्न पार्श्व देवी- देवता लगाए जाते हैं ऐसे में इन पार्श्व देवि देवताओं के रंगरोदन का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। रूपकार सेवक नीम की लकड़ी से कुल 27 पार्श्व देवि देवताओं का विग्रह निर्माण कार्य पूरा कर चुके हैं। चित्रकार सेवक इन पार्श्व देवी देवताओं की मूर्तियों के रंगरोदन का कार्य कर रहे हैं। प्रत्येक रथ में 9 पार्श्व देवि देवताओं की मूर्ति लगाई जाती है। नंदीघोष रथ में हरिहर, पंडु नृसिंह, गिरी गोवर्द्धनधारी, रावण छ्त्रभंग, चिंतामणि कृष्ण, नारायण, मधु सुदन, लक्ष्मण तथा पंचमुखी हनुमान जी मूर्ति स्थापित की जाएगी। 
उसी तरह से देवि सुभद्रा के रथ में विमला, मंगला, बाराही, भद्रकाली, उमा, कात्यायनी, हरचंडी, रामचंडी, अघोरा की मूर्ति लगायी जाएगी। बलभद्र जी के तालध्वज रथ में प्रलंबारीमहादेव, बाइस भुजा वाले नृसिंह, बलराम नटवर, नटवर गणेश, अंगद, नाकाम्बर, षडानन, कार्तिकेश्वर, मधु कैटव तथा अनंत वासुदेव की प्रतिमूर्ति लगायी जाएगी। इस तरह से तीनों रथों में 27 पार्श्व देवी देवताओं के रंगरोदन का कार्य सेवक युद्ध स्तर पर कर रहे है।
गौरतलब है कि रथयात्रा के दिन नंदीघोष रथ में श्रीजगन्नाथ महाप्रभु विराजमान होंगे जबकि रथ में मदन मोहन की चलंति प्रतिमा अवस्थापित की जाएगी। उसी तरह से तालध्वज रथ में श्रीबलभद्र जी विराजमान होंगे और उनके साथ ही राम ए​वं कृष्ण की चलंति प्रतिमा अवस्थापित की जाएगी। दर्प दलन रथ में देवि सुभद्रा जी विरामान होंगे और उनके साथ श्री सुदर्शन विराजमान होंगे। नंदीघोष रथ के सारथी के दारूक है। तालध्वज रथ का सारथी मातली है जबकि दर्प दलन रथ का सारथी अर्जुन हैं। नंदी घोष में लगने वाली रस्सी को शंखचुर्ण, नागुणी, तालध्वज रथ के रस्सी का नाम बासुकी, दर्पदलन रथ के रस्सी का नाम स्वर्णचूर्ण है।